हिमालय , कविता, कक्षा दूसरी

 

हिमालय


हिमालय , कविता, कक्षा दूसरी 

Himalaya poem 

खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी - पानी में।

डटे रहो सब अपने पथ में, कठिनाई तूफानों में।।

डिगो न अपने पथ पर से तो सब कुछ पा सकते प्यारे।

तुम भी ऊंचे बन सकते हो, छू सकते नभ के तारे।।

अटल रहा जो अपने पथ पर लाख मुशिबत आने पर।

मिली सफलता उसको जग में, जीने में, मर जाने में।।

जितनी भी बाधाएं आईं, उन सबसे तो लड़ा हिमालय।

इसलिए तो दुनिया भर में, सबसे बड़ा हुआ हिमालय।।

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हिमालय कविता का भावार्थ 

कविता 'हिमालय ' में कवि संघर्ष और लगातार काम करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि , हिमालय की तरह अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहो। किसी आंधी तूफान से नहीं डरो। लगातार संघर्ष से ही मनुष्य आसमान की बुलंदियों को छू सकता है। जो अपने पथ पर हिमालय की तरह अटल रहेगा वही सफलता का स्वाद चख सकेगा। 


हिमालय सदियों से भारत का प्रहरी रहा है। यह पर्वतों का राजा है और सालों भर इसकी चोटियां सफेद बर्फ से ढकी रहती है। हमें भी हिमालय की तरह अपने कार्य पर डटे रहना चाहिए।




देश की कोयला राजधानी धनबाद के बारे में जानकारी  

       यही तो जीवन है !


यही तो जीवन है


एक कवि  बाग में टहल रहे थे।  बाग में हजारो फूल खिले थे।  बाग का नजारा स्वर्ग के जैसा था। कवि महोदय एक फूल के पास गये और बोले, मित्र , तुम कुछ दिनों में मुरझा जाओगे। फिर भी इतना मुस्कुरा रहे हो ? इतना खिले रहते हो ? तुम्हें दुख नहीं होता ?

फूल कुछ नहीं बोला। तभी एक तितली कहीं से उड़ती हुई आई और फूल पर बैठ गई। काफी देर तक तितली ने फूल के सुगंध का आनंद लिया और फिर उड़ गई। ।

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कुछ देर बाद एक भंवरा आया। उसने फूल के चारों ओर चक्कर लगाते हुए संगीत सुनाया। फूल पर बैठ कर रस पीया और चलता बना। धीमी गति से हवा चलती रही और फूल खुशियों से झूमता रहा। 

एक मधुमक्खी आयीं और फूल का ताजा, मधुर पराग लेकर मधु बनाने चली दी। मधुमक्खी भी खुश, फूल भी खुश। तभी एक बच्चा आया। वह फूल को देखकर उसके पास गया। उसने अपने नन्हें और कोमल हाथों से फूल का स्पर्श किया और खेल में रम गया। 

अब फूल ने कवि से कहा, यह सच है कि मेरा जीवन छोटा है , लेकिन इस छोटे से जीवन से ही मैंने बहुत सारे लोगों के जीवन में मुस्कान बिखेरी है। मुझे पता है कि मुझे कल इस मिट्टी में मिल जानीं है, लेकिन इस मिट्टी ने ही मुझे ताजगी और सुगंध दी है। तो मुझे इसमें मिलने में कोई शिकायत नहीं है। 

फूल ने आगे कहा , मैं मुस्कराता हूं, क्योंकि मैं मुस्कुराना जानता हूं। मेरे बाद कल फिर इस मिट्टी में नया फूल खिलेगा। और यह बाग महक उठेगा। न ही यह ताजगी कम होगी और नहीं यह मुस्कुराहट। यही तो जीवन है। जीवन ऐसे ही चलता रहता है।


साभार 




डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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