1.संपादन ( sampadan) 2. संपादन का अर्थ एवं परिभाषा तथा कार्य 3.संपादन के सिद्धांत



संपादन, sampadan


 1.संपादन 2. संपादन का अर्थ एवं परिभाषा तथा कार्य 3.संपादन के सिद्धांत

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जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल की भूमिका निभाना संपादन कहलाता है। संपादक, समाचार संपादक, सहायक संपादक एवं उप संपादक की यही जिम्मेदारी होती है। रिपोर्टर द्वारा लायी गई खबरें तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी को त्रुटि मुक्त करके प्रकाशन के लायक बनाने का दायित्व इन लोगों की ही होती है।

2.संपादन का अर्थ, परिभाषा एवं  संपादक के कार्य, sampadan ke tatparya, sampadan in English 

संपादन ( editing ) का अर्थ है किसी सामग्री को त्रुटि मुक्त करके उसे पढ़ने लायक बनाना। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जो भी खबरें रिपोटिंग टीम द्वारा लाई जाती है , उन्हें शुद्ध करके प्रकाशित करने का कार्य संपादन कहलाता है।

जब कोई रिपोर्टर कोई समाचार लाता है तब उपसंपादक अथवा संपादक उसे ध्यान से पढ़ता है और उसमें व्याकरण, भाषा शैली, अथवा वर्तनी संबंधित जो अशुद्धियां होती हैं, उन्हें दूर करता है।  फिर वह निर्धारित करता है कि किस समाचार को कितना महत्व दिया जाय और समाचार पत्रों में कहां स्थान दिया जाय।

ये सारे कार्य इतने सरल नहीं है। इन सब कार्यों के समुचित व्यवस्था के लिए कुछ सिद्धांत बनाए गए हैं जिन्हें संपादन के सिद्धांत कहा जाता है।

3. संपादन के सिद्धांत, sampadan ke sidhant 

समाचार संगठन का पहला कर्तव्य अपने पाठकों का विश्वास बनाए रखने का है। समाचार संगठन की सफलता उसकी विश्वसनीयता पर आधारित होती है।  भाई किसी का विश्वास जीतना इतना आसान भी नहीं है, इसके लिए कुछ सिद्धांत निर्धारित किए जाते हैं और उनका पालन करना आवश्यक हो जाता है। इसकी साख बनी रहे,  इसके लिए सिद्धांत और नियम बनाए गए हैं, जिन्हें संपादन के सिद्धांत कहा जाता है। वे सिद्धांत हैं ----

समाचार लेखन

1.तथयों की शुद्धता ( एक्यूरेसी )

2.वस्तुपरकता ( आब्जेक्टिविटी )

3. निष्पक्षता ( फेयरनेस )

4.संतुलन ( बैलेंस )

5. स्त्रोत ( सोर्सेज, एन्टीव्यूशन )


1.तथ्यों की शुद्धता ( एक्यूरेसी )

संपादन करते समय संपादक मंडल का यह पहला कर्तव्य बनता है कि वह तथ्यों की शुद्धता पर ध्यान दें। प्रमाणित समाचार को ही अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित करें। समाचार की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि तथ्य सही और सटीक हो।


2. वस्तुपरकता (औब्जेक्टिविटी )

संपादन करते समय संपादक मंडल को यह ध्यान रखना चाहिए कि समाचार, घटनाएं तथा तथ्य उसी रूप में रखे जाएं जिस रूप में वह घटित होती हैं। पत्रकार के मन के अनुसार उसका स्वरूप नहीं बदलना चाहिए। कहीं विरोध , समर्थन अथवा किसी कारण से समाचार का स्वरूप नहीं बदलना चाहिए।


3. निष्पक्षता (फेयरनेस )


समाचार पत्रों में निष्पक्षता का आशय है किसी के पक्ष में नहीं झुकना। पत्रकार रहे तो न्याय के पक्ष में रहे। किसी व्यक्ति, पार्टी अथवा किसी विचारधारा के पक्ष में नहीं रहे।


4. संतुलन ( बैलेंस )


किसी-किसी समाचार में एक से अधिक पक्ष भागीदार होते हैं। ऐसे में संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है। कभी कभी पत्रकारिता पर यह आरोप लगने लगता है कि वह किसी खास व्यक्ति अथवा घटना का एकतरफा रिपोर्ट प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं, किसी खास दल के नेता के विरोध में बहुत अनाप-शनाप लिखा जाता है, बाद में पता चलता है कि यह सब झूठा था  । ऐसी स्थिति में पत्रकारिता बदनाम होती है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया है। इन्हें अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेवार होना चाहिए।

समाचार लेखन

5. स्रोत ( सोर्सेज )


समाचार प्राप्त करने के स्रोत प्रमाणिक होने चाहिए। पी.टी. आई., भाषा , यूं .एन.आई. जैसे संगठन समाचार के प्रमाणिक स्रोत हैं। प्रायः समाचार संगठन इन स्रोतों का उपयोग करते हैं। लेकिन समाचार पत्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे समाचार के लिए प्रमाणिक स्रोतों का ही सहारा लें। किसी अप्रमाणिक स्रोत का सहारा न लें।


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लेखक

डॉ उमेश कुमार सिंह, भूली धनबाद झारखंड।

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