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रजनी, एकांकी , लेखिका मन्नू भंडारी, Rajni ,Mannu Bhandari

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  रजनी, एकांकी, लेखिका मन्नू भंडारी, Rajni, Mannu Bhandari रजनी सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध एकांकी है जिसमें विभिन्न विद्यालयों में ट्यूशन के नाम पर छात्रों के शोषण का जीवन्त वर्णन किया गया है। साथ ही  शासन - प्रशाासन की अकर्मण्यता  भी दर्शाया गया है।   यहां एकांकी का सारांश, प्रश्न उत्तर, शब्दार्थ और संदेश का वर्णन किया गया है जिससे पाठकों में जागरूकता पैदा हो। ग्यारहवीं कक्षा में इसका अध्यापन होता है। रजनी एकांकी का सारांश, रजनी एकांकी का पात्र परिचय, रजनी एकांकी पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ? रजनी पाठ का प्रश्न उत्तर, ग्यारहवीं कक्षा हिन्दी प्रश्न उत्तर, लेखिका मन्नू भंडारी का जीवन परिचय। शिक्षक ट्यूशन की लालच में छात्रों का शोषण कैसे करते हैं ? लेखिका मन्नू भंडारी का जीवन परिचय मन्नू भंडारी का असली नाम महेंद्र कुमारी था। इनका जन्म 1931 ई. में राजस्थान के भानपुरा नामक स्थान में हुआ था। नई कहानी के आंदोलन में इनका विशेष योगदान रहा है। इनकी कहानियों में पारिवारिक, सामाजिक और खाशकर नारी विसंगतियों को बड़ी बखूबी से उभारा गया है। रजनी एकांकी का सारांश रजन

Pathik poem,पथिक कविता, कवि राम नरेश त्रिपाठी

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 पथिक कविता, Pathik poem कवि - राम नरेश त्रिपाठी पथिक कविता का भावार्थ, पथिक कविता की व्याख्या, पथिक कविता का सार, कवि राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय । 11वीं हिन्दी। प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग - विरंग निराला। रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला।  नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नीलगगन है।  घन पर बैठ बीच में बिचरू यही चाहता मन है।। व्याख्या   पथिक सागर के किनारे खड़ा है। सामने सूर्योदय हो रहा है। सूर्योदय की शोभा निराली है। इस शोभा को देखकर उसके मन में भाव आता है --   पथिक के सामने सूर्य और बादलों का समूह है। ऐसा लगता है जैसे बादलों का समूह नये नये रूप बनाकर सूर्य के सामने नाच रहे हों। नीचे नील समुद्र है और ऊपर नीला आकाश। पथिक का मन करता है कि बादलों के बीच बैठकर आनंद विहार करूं। यहां प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का वर्णन किया गया है। सूर्य के सामने नित्य नये नये बदलते रूप में किसी सुन्दर स्त्री की कल्पना की गई है। रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है। हरदम यह हौसला हृदय में प्रिय ! भरा रहता है। इस विशाल विस्तृत , महिमामय रत्नाकर के घर के -- कोने - कोने में लहरों पर बैठ फिरूं जी भर क