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काम करो, कर्तव्य ही तुम्हारे हाथ में है।

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काम करो, कर्तव्य ही तुम्हारे हाथ                   में है।  एक बार एक गरीब किसान ने गांव के जमींदार से कहा,  आप एक साल के लिए अपना एक खेत मुझे उधार दे दीजिए, मैं उस खेत में मेहनत करके खेती करूंगा । जमींदार दयालु व्यक्ति था,  उसने किसान को एक खेत एक साल के लिए उधार दे दिया।  इतना ही नहीं, किसान की मदद के लिए उसने पांच व्यक्ति भी दिए । वह किसान उन पांच व्यक्तियों के साथ खेत में काम करने लगा।    एक दिन किसान ने सोचा,  जब पांच लोग खेत में काम कर रहे हैं तो मेरी क्या जरूरत है? यह सोचकर वह घर वापस आ गया और मीठे-मीठे सपने देखने लगा।  जब उसकी फसल तैयार हो जाएगी तो उसे मोटी कमाई होगी और वह अमीर बन जाएगा।  अब वह खेत पर कम जाने लगा । वहीं किसान जो पांच सहायक मिले थे वह अपनी मनमर्जी से काम करने लगे।  जब मन आता खाद डाल देते हैं, जब मन करता पानी डाल देते। सब काम मनमर्जी से होता। समय बीत रहा था और फसल काटने का समय आ चुका था।    किसान ने जब फसल देखी  तो सिर पकड़ लिया।  फसल अच्छी नहीं ...

शांति दूत श्री कृष्ण , महाभारत प्रसंग, श्री कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे तो क्या हुआ?

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      शांति दूत श्री कृष्ण , महाभारत प्रसंग, श्री कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे तो क्या हुआ? शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से श्री कृष्णा हस्तिनापुर गए। उनके साथ-सात्यकि भी गए थे । रास्ते में कुशस्थल नामक स्थान में वह एक रात विश्राम करने के लिए ठहरे । हस्तिनापुर में जब यह खबर पहुंची कि श्री कृष्ण पांडवों की ओर से दूत बन कर संधि चर्चा के लिए आ रहे हैं तो धृतराष्ट्र ने आज्ञा दी कि नगर को खूब सजाया जाए । पुरवासियों ने द्वारकाधीश के स्वागत की धूमधाम से तैयारी की । दु:शासन का भवन दुर्योधन के भवन से अधिक ऊंचा और सुंदर था , इसलिए धृतराष्ट्र ने आज्ञा दी कि इस भवन में श्री कृष्ण को ठहरने का प्रबंध किया जाए।   श्री कृष्ण हस्तिनापुर पहुंच गए । पहले श्री कृष्णा धृतराष्ट्र के भवन में गए।  फिर धृतराष्ट्र से विदा लेकर वह विदुर के भवन में गए । कुंती वही श्री कृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थी । श्री कृष्ण को देखते ही उन्हें अपने पुत्रों का स्मरण हो आया । श्री कृष्ण ने उन्हें मीठे वचनों से सांत्वना दी और उनसे विदा लेकर दुर्योधन के भवन में गए।  दुर्योधन ने श्री कृ...

गुरु का आखिरी संदेश , कहानी।

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 गुरु का आखिरी संदेश , कहानी। एक महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे।उनका अंत बहुत निकट आ चुका था। एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों  को बुलाया और कहा - प्रिय शिष्यों! मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है।मेरी आत्मा बार बार मुझे शरीर त्यागने को कह रही है। मैंने तय किया है कि आज जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा , तब मैं समाधि ले लूंगा। गुरु के मुख से यह बात सुनकर सभी शिष्य घबरा गये। शोक विलाप करने लगे। तब गुरु ने उन्हें शांत किया और जीवन का सत्य स्वीकार करने को कहा। थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई। फिर एक शिष्य ने कहा - गुरु जी क्या आज हमें आप कोई शिक्षा नहीं देंगे ?  गुरु जी ने कहा - जरूर दूंगा। गुरु जी ने कहा -- मेरे निकट आओ। मेरे मुख में देखो और बताओ कि क्या दीख रहा है। जीभ या दांत? शिष्य ने कहा - जीभ गुरु जी। गुरु जी ने फिर पूछा - पहले कौन आया था ? शिष्य ने कहा - जीभ। गुरु जी ने कहा - कठोर कौन था ? शिष्य ने कहा - दांत गुरु जी। इस पर गुरु जी ने कहा - दांत जीभ से उम्र में छोटे और कठोर होने पर भी पहले चले गए। लेकिन विनम्र, संवेदनशील और लचीली जीभ अभी भी जीवित हैं। तुम सब यह समझ लो कि यहीं संसार ...

यही तो जीवन है ! कहानी

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देश की कोयला राजधानी धनबाद के बारे में जानकारी          यही तो जीवन है ! एक कवि  बाग में टहल रहे थे।  बाग में हजारो फूल खिले थे।  बाग का नजारा स्वर्ग के जैसा था। कवि महोदय एक फूल के पास गये और बोले, मित्र , तुम कुछ दिनों में मुरझा जाओगे। फिर भी इतना मुस्कुरा रहे हो ? इतना खिले रहते हो ? तुम्हें दुख नहीं होता ? फूल कुछ नहीं बोला। तभी एक तितली कहीं से उड़ती हुई आई और फूल पर बैठ गई। काफी देर तक तितली ने फूल के सुगंध का आनंद लिया और फिर उड़ गई। । देश की कोयला राजधानी धनबाद के बारे में जानकारी    कुछ देर बाद एक भंवरा आया। उसने फूल के चारों ओर चक्कर लगाते हुए संगीत सुनाया। फूल पर बैठ कर रस पीया और चलता बना। धीमी गति से हवा चलती रही और फूल खुशियों से झूमता रहा।  एक मधुमक्खी आयीं और फूल का ताजा, मधुर पराग लेकर मधु बनाने चली दी। मधुमक्खी भी खुश, फूल भी खुश। तभी एक बच्चा आया। वह फूल को देखकर उसके पास गया। उसने अपने नन्हें और कोमल हाथों से फूल का स्पर्श किया और खेल में रम गया।  अब फूल ने कवि से कहा, यह सच है कि मेरा जीवन छोटा है , लेकिन इ...

पत्ते से सीख patte se seekha ( प्रेरणा दायक कहानी ) Patte se sikh

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                     पत्ते से सीख        ( प्रेरणा दायक कहानी )             Patte se sikh गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी। तभी अचानक नदी किनारे खड़े पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे। एक पत्ता अड़ गया, कहने लगा चाहे जो हो मैं इस नदी को रोक कर ही रहूंगा चाहे मेरी जान ही  क्यों ना चली जाए । मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।  वह जोर जोर से चिल्लाने लगा। रूक जा गंगा। अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती। मैं तूझे यहीं रोक दूंगा। । परंतु नदी बहती ही जा रही थी। उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है। पत्ते की जान पर बन आई थी। वह लगातार कोशिश कर रहा था। वह नहीं जानता था कि वह बिना  लड़कर भी वही पहुचेगा, जहां लड़कर, थककर, हारकर पहुंचेगा। दूसरा पत्ता नदी के प्रवाह के साथ बड़े मजे से बहता जा रहा था। यह कहता हुआ कि ' चल गंगा , आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचाकर ही दम लूंगा। चाहे जो हो जाए, मैं तेरे मार्ग में कोई बाधा नह...

आकांक्षा कभी संपूर्ण नहीं होती, फकीर की फूटी बाल्टी, कहानी

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फकीर की फूटी बाल्टी , कहानी   एक आदमी सूफी फकीर के पास आया और उसने कहा मेरी तृष्णा की पूर्ति कैसे होगी फकीर ने उससे कहा मेरे साथ आओ मैं कुएं पर पानी भरने जा रहा हूं , तुम्हारे सवाल का जवाब वही मिल जाएगा कहने की शायद जरूरत नहीं पड़ेगी तुम देखकर ही समझ लोगे। जिज्ञासु थोड़ा चकित हुआ कि यह कैसा उपदेश है जो  की कुएं पर दिया जाएगा । फकीर होश में है कि नहीं ? फकीर था भी ठक्कर बड़ा मस्त,  उसकी आंखें ऐसी थी जैसे उसने अभी-अभी शराब पी हो । चलता था ऐसे जैसे कोई मदमस्त शराबी चलता हो । जिज्ञासु डरने लगा , कुएं का मामला था । उसके मन में आशंकाएं उठने लगी । कही यह धक्का ना दे दे या खुद ही कूद जाए और हम फंस जाए । फिर भी उत्सुकता थी कि देखे वह क्या उत्तर देते हैं। तुलसी के राम   पढ़ने के लिए क्लिक करें  Popular posts of this blog, click and watch अन्तर्राष्ट्रीय  योग दिवस 2021 नेताजी का चश्मा "कहानी भी पढ़ें सच्चा हितैषी निबन्ध  ।  क्लिक करें और पढ़ें।    Republic Day Essay   कुएं पर पहुंच फकीर की हरकतें देखकर वह व्यक्ति हैरान रह गया। उसे लग...

जैसी करनी वैसी भरनी Jaisi karni waisi bharni

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                जैसी करनी वैसी भरनी                    Jaisi  karni  waisi bharni                   लेखक -- डॉ उमेश कुमार सिंह  एक राजा था । उसने अपने तीन दरबारी मंत्रियों को बुलाया और कहा -- जाओ और अपने हाथ में एक एक थैली लेकर शीघ्र आओ। राजा की आज्ञा थी। भला विलम्ब कैसे होती ? तीनों मंत्रियों ने जल्दी से एक - एक थैली लेकर राजा के पास हाजिर हुए। अब राजा ने उन्हें उस थैले में ऐसे - ऐसे फल भरकर लाने को कहा जो राजा को पसंद हों। राजा की पसंद की बात थी । तीनों मंत्री बगीचे की ओर दौड़ पड़े।  अब आगे की बात सुनिए। पहले मंत्री ने सोचा - राजा को पसंद करने के लिए हमें अच्छे-अच्छे फल इक्कठे करने चाहिए। राजा खुश होंगे तो हमें इनाम देंगे। ऐसा सोचकर उसने खूब मीठे-मीठे फ़ल थैली में भर लिए।  अब दूसरे मंत्री की बात सुनिए। उन्होंने सोचा। राजा कौन थैली खोलकर फल देखने जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने जैसे तैसे कुछ अच्छे कुछ खराब फल थैली में भर लिए। अब...

नचिकेता कहानी का सारांश और प्रश्न - उत्तर Nachiketa story summary and questions answers

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 Nachiketa  नचिकेता कहानी  स्वर्ग पाने के उपाय sawarg pane ke upay आत्मा का रहस्य क्या है ? Atama ka rahasya  नचिकेता की कहानी क्या है ?  नचिकेता के गुरु कौन है थे ? यमराज नचिकेता के गुरु थे। यमराज ने नचिकेता को आत्मा के रहस्य के बारे में जानकारी दी।               नचिकेता  नचिकेता कहानी का सारांश और प्रश्न - उत्तर Nachiketa story summary and questions answers , by Dr. Umesh Kumar Singh  नचिकेता कहानी कठोपनिषद से ली गई है। यह कथा बालक नचिकेता के माध्यम से एक ऐसा उदात्त चरित्र प्रस्तुत करती है जिसमें अटूट सत्य निष्ठा, दृढ़ पितृभक्ति के साथ अनुचित कार्य करने पर  पिता का विरोध करने का और आत्म ज्ञान हेतु सांसारिक सुखों के प्रलोभन को ठुकरा देने का साहस भी है। नचिकेता का चरित्र अनुकरणीय है। यहां कहानी के साथ ही प्रश्न उत्तर भी दिया गया है। यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित हो रही थी। वेद मंत्रों के साथ ब्राह्मण यज्ञ कुंड में घी आदि की आहूतियां दे रहे थे। वेदोच्चारण से वातावरण पवित्र हो रहा था। वाजश्रवा के चेहरे पर विशेष प्रसन्नता...

लोमड़ी और सारस की शिक्षा प्रद कहानी, जैसे कौ तैसा करो, जैसे सारस ने किया Lomdi and saras story,jaise ko taisa

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  लोमड़ी और सारस की शिक्षा प्रद कहानी, जैसे कौ तैसा करो, जैसे सारस ने किया Lomdi and saras story,jaise ko taisa लोमड़ी और सारस की कहानी Saras ne Lomdi ko kaise maja chakhaya Lomari aur saras ki kahani  किसी जंगल में एक बहुत सुन्दर सरोवर था। उस सरोवर में तरह तरह के जीव जंतु रहते थे। सरोवर मछलियों से भरा पड़ा था। उन मछलियों को खाने के लिए बहुत से बगुले और सारस वहां प्रतिदिन आते और भरपेट मछलियां खाते। वहीं एक चालाक लोमड़ी भी अपने परिवार के साथ रहती थी। उसने सारस और बगूलो को मछलियां खाते देखती तो उसका भी मुंह पानी से भर जाता।  वह लोमड़ी एक दिन सारस के पास आकर उससे मित्रता कर ली और इधर उधर की बातें करने के बाद अपने घर चली गई।  कुछ ही दिनों में सारस से उसकी गहरी दोस्ती हो गई। सारस मछलियां पकड़कर उसे खाने को देता। परंतु लोमड़ी तो थी बड़ी धूर्त और बदमाश। उसने सारस को एक दिन अपने घर बुलाया। उसने बड़  बड़े परात में सुगंधित और स्वादिष्ट सूप बनाकर सारस को खाने को दिये। अब भला लंबे चोंच वाले सारस परात से सूप कैसे खा सकता था। और इधर लोमड़ी चट पट सारे जूस अपनी जीभ से चाट कर गय...

Phul ka mulya (story ) फूल का मूल्य, आठवीं कक्षा, महात्मा बुद्ध का प्रभाव, रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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  फूल का मूल्य, कहानी का सारांश, प्रश्न उत्तर, phul ka mulya story by Rabindranath Thakur ' फूल का मूल्य' रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित एक ऐसी कहानी है जिसमें  सच्ची भक्ति और निष्ठा को धन दौलत की चाह से ऊपर दिखाया गया है। भगवान के यहां राजा और प्रजा में कोई फर्क नहीं होता है। यहां फूल का मूल्य  कहानी का सारांश, प्रश्न उत्तर विस्तार से दिया गया है। आठवीं कक्षा में यह कहानी पढ़ाई जाती है। शीतकाल के दिन थे प्रचंड सीट से सारे पुष्प सूख गए हैं लेकिन एक सरोवर में एक कमल दल खिला हुआ था यह सरोवर किसका है सभी अचंभित होकर उस कमल फूल को देख रहे थे क्योंकि ऐसा मनोहर फूल तो बसंत ऋतु में भी नहीं मिलता। यह सरोवर सुवास माली का था। सुदास का मन खुश था ।वह सोच रहा था आज राजा तो इस सुंदर कमल फूल का मुंह मांगा दाम देगा। उसके सारे मनोरथ सिद्ध हो जाएंगे। कमल फूल लेकर सुवास राजमहल के सामने खड़ा था। उसने राजमहल में खबर भेजवा दिया था। बस थोड़ी देर में राजा जी बुलवाएगे। तभी वहां एक पुरुष आया और सुदास से कहा - यह फूल तो बहुत सुंदर है, क्या यह फूल बेचना है ? सुदास ने कहा - इसे राजा के चरणों में अर्पि...

घुमक्कड़ी पाठ लेखक राहुल सांकृत्यायन कक्षा आठवीं, ghumkkdi by Rahul Sankrityayan class 8

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घुमक्कड़ी पाठ लेखक राहुल सांकृत्यायन कक्षा आठवीं, ghumkkdi by Rahul Sankrityayan class 8 घुमक्कड़ किसे कहते हैं, घुमक्कड़ी पाठ का सारांश, घुमक्कड़ी पाठ का शब्दार्थ, घुमक्कड़ी पाठ के प्रश्न उत्तर, घुमक्कड़ी पाठ के लेखक कौन है। घुमक्कड़ कौन हो सकतें हैं । घुमक्कड़ी के मार्ग में आने वाले बाधाएं। घुमक्कड़ी से क्या लाभ है। महात्मा बुद्ध और महावीर क्या घुमक्कड़ थे। Ghumakkari chapter summary . Ghumakkari chapter questions answers, word meaning, writer of ghumakkari chapter, benifit of ghumakkari. Class 8 hindi. घुमक्कड़ी पाठ में लेखक राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं कि मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु घुमक्कड़ी है। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता । दुनिया दुख में हो चाहे सुख में उसे सही समय पर सहारा मिलता है तो घुमक्कड़ के द्वारा । प्राकृतिक आदिम मनुष्य बहुत बड़ा घुमक्कड़ था। खेती बागवानी तथा घर द्वार से मुक्त होकर वह पक्षियों की भांति पृथ्वी पर सदा विचरण करता था जाड़े में यदि यहां है तो गर्मियों में कहीं और दूर। आधुनिक काल में भी घुमक्कडों के काम की बात कहने...

सिद्धार्थ का गृह - त्याग, Siddharth ka grih tyag

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  सिद्धार्थ का गृह त्याग , Siddharth ka grih tyag Mahatma Buddha ka jiwan, Mahatma Buddha ke updesh , Buddha Dharm  महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु में हुआ था। उनके पिता महराज शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे। राजकुमार सिद्धार्थ सिद्धि  प्राप्त करने के लिए अपने घर का त्याग किया था। वे भूखे - प्यासे वन - वन भटकते रहे, अंत में उन्हें बोधगया में बोधी वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए ज्ञान की प्राप्ति हुई उन्होंने अहिंसा का उपदेश दिया। आइए, इस समय हम सिद्धार्थ के गृह त्याग संबंधी प्रसंग का अध्ययन करें। महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय, महात्मा बुद्ध का संदेश, महात्मा बुद्ध का उपदेश, महात्मा बुद्ध का जन्म कहां हुआ। महात्मा बुद्ध के पिता कौन थे ? सिद्धार्थ कौन थे ?  Siddharth kaun the, सिद्धार्थ किनका नाम था ? सिद्धार्थ के पिता कौन थे ? सिद्धार्थ के जन्म के समय किसने भविष्यवाणी की थी ? महर्षि आसित ने क्या भविष्यवाणी की थी ? यशोधरा कौन थी? सिद्धार्थ कहां के राजकुमार थे ? सिद्धार्थ के पुत्र का क्या नाम था ? बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे ? सिद्धार्थ के जन्म के समय ही उस समय के प्रसिद्ध ...

Chacha - bhatija ka prem, चाचा - भतीजे का प्रेम

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चाचा और भतीजे का प्रेम, ChaCha -  bhatija ka prem चाचा और भतीजे का प्रेम कैसा होता है, चाचा को चाहिए भतिजा, चाचा और भतीजे के प्रेम में दरार कैसे होता है, फिल्मों में चाचा और भतीजे का प्रेम। चाचा और भतीजे का प्रेम संसार में बहुत प्रसिद्ध है। चाचा को हमेशा भतीजे की चाह होती है। वह अपने भतीजे को उंगली पकड़कर चारों ओर घूमाता है और संसार से उसका परिचय करवाता है। उसे चलना सिखाया है । परंतु कुछ स्वार्थ वश ऐसी परिस्थियां उत्पन्न हो जाती है कि चाचा और भतीजे के प्रेम में दरार उत्पन्न हो जाता है। इस लेख में इन्हीं विंदुओं पर चर्चा करते हैं। चाचा और भतीजे का प्रेम चाचा और भतीजे का प्रेम जगत में प्रसिद्ध है। जब बड़े भैया का विवाह सम्पन्न हो जाता है तब छोटे भाई की यही कामना होती है कि मुझे जल्दी से जल्दी एक भतीजे की प्राप्ति हो जिससे मेरा बचपन मुझे दोबारा मिल जाए। वह इसके लिए अपनी भाभी का उपकार मानता है।  फिल्म ' नदियां के पार ' में एक गीत है। छोटा भाई चंदन अपनी भाभी के आने पर बहुत खुश हैं क्योंकि भाभी के आने से सारा घर का हुलिया ही बदल गया है। तब वह गीत गाते हुए निवेदन करता है, " देई द...

प्रायश्चित कहानी , लेखक भगवती चरण वर्मा, Prayshchit story, Bhagwati charan verma

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प्रायश्चित कहानी, लेखक भगवती चरण वर्मा, Prayshchit story by Bhagwati charan verma ' प्रायश्चित' कहानी भगवती चरण वर्मा द्वारा लिखित एक ऐसी कहानी है जिसमें मध्यकालीन समाज में व्याप्त ढोंग और अंधविश्वास का बखूबी बखिया उधेड़ने का प्रयास किया गया है। यह तो अच्छा हुआ कि कबरी बिल्ली मरी नहीं थी , बर्ना रामू की बहू की खैर न होती और पंडित परमसुख के तो पौ बारह ही थे। तो आइए , प्रायश्चित कहानी का अध्ययन कर उसके प्रश्न उत्तर पर भी गंभीरता से विचार किया जाए। रामू की शादी हुए बहुत दिन नहीं बीते थे।  चौदह वर्ष की बालिका जब पहली बार बहू बनकर ससुराल आई तो उसकी सास ने पूरे घर की मालकिन उसे  ही बना दिया। किसी को कुछ देना - लेना हो या बाजार से कुछ मंगाना हो, सबकी चिंता वही करती। लेकिन दुर्भाग्यवश एक कबरी नाम की बिल्ली उस घर में ऐसी परीक गई थी कि नाम मत पूछो। बहू उससे बहुत परेशान रहती। बहू कमसिन थी, उसमें अनुभव का अभाव था। कभी भंडार घर खुला रह जाता तो कभी भंडार घर में बैठे बैठे ही सो जाती। ऐसे में कबरी बिल्ली को मौका मिल जाता, दूध, घी सब चट कर जाती। बाजार से मलाई आया , बहू जब तक पान लगाती, तब तक म...