संदेश

poem लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम

चित्र
  भारतीय संतों की महानता  संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम एक बार की बात है। बादशाह अकबर कृष्ण भक्त कवि कुंभनदास की गायकी की ख्याति सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुलाने के लिए पालकी भेजा। कुभानदास बड़े स्वाभिमानी और निडर थे। वे श्री कृष्ण के भक्त जो थे। बादशाह अकबर के द्वारा भेजे पालकी को ठुकरा दिया। पैदल ही फतेहपुर सीकरी पहुंचे। बादशाह अकबर बहुत खुश हुआ। उसने कुंभनदास जी से कुछ सुनाने का आग्रह किया। उसकी इच्छा थी कि कुंभनदास बादशाह की खिदमत में कुछ गाएंगे। परन्तु भक्त कवि कुंभनदास जी ने गाया -- संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम ।। अर्थात साधु - संतों को फतेहपुर सीकरी से क्या काम है। यहां से उन्हें क्या लेना-देना है ? झूठे भटकते रहेंगे। और बादशाह के पास आने - जाने के क्रम में पनही ( जूते ) भी टूट जाएंगे। और हरि नाम भी भूल जाएंगे।  बादशाह अकबर समझ गये कि ईश्वर भक्त बड़े निडर होते हैं। इन्हें दरबारी नहीं बनाया जा सकता है। ये स्पष्ट वक्ता हैं, इनपर नाराज नहीं होना चाहिए। नाहिंन रह्यै मन में ठौर। नंद नंदन अछत कैसे आनियौ उर और

जल में कुंभ कुंभ में जल है, कबीर के विचार, आत्मा परमात्मा के प्रति, jal me kumbh hai

चित्र
  जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी।  फूटे कुंभ जल जलहि समाना यह तथ्य कथ्यो ज्ञानी।। जल - पानी। कुंभ - घड़ा। समाना - समाहित होना। तथ्य - गूढ़ बात। कथ्यो - कहते हैं। ज्ञानी - विद्वान। कबीर दास जी एकेश्वरवादी कवि हैं। वे कहते हैं - जिस प्रकार कोई  मिट्टी का घड़ा नदी के सतह पर तैर रहा हो, और उसके अंदर जल हो। और नदी में भी जल है जिस पर पानी से भरा घड़ा तैर रहा है। दोनों ओर जल है। तो यहां दोनों तरफ के जल को मिलने से, एक होने से कौन रोक रहा है। वही मिट्टी की पतली दीवार। ज्योंहि यह पतली दीवार टूट जाती है, दोनों जल मिलकर एक हो जाते हैं।  मित्रों ! इस प्रकार  शरीर और आत्मा के साथ भी यही होता है। जब तक शरीर रूपी घट में आत्मा कैद है, तब तक वह विभिन्न नामों से जाना पहचाना जाता है । लेकिन जैसे ही आत्मा इस शरीर रूपी घट से निकल जाता है, वह परमात्मा में विलीन हो जाता है। फिर उसकी अलग पहचान नहीं रह जाती। आत्मा परमात्मा में पूर्णतया विलीन हो जाता है। तुलसी के राम   पढ़ने के लिए क्लिक करें  अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन

' मेघ आए ' कविता, कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सारांश और प्रश्न उत्तर, Megh aaye poem, poet Sarweshwar Dayal sexena, summary, questions answers

चित्र
' मेघ आए ' कविता, कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सारांश और प्रश्न उत्तर, Megh aaye poem, poet Sarweshwar Dayal sexena, summary, questions answersmegh aaye kavita ka uddeshya, megh aaye kavita ka saransh, megh aaye kavita ka questions answers, megh aaye bade ban dhan ke sawar ke.  मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के , मेघ का अर्थ, मेघ का काम, मेघ कैसे आते हैं? मेघ कहां आते हैं ? मेघ कब आते हैं ? मेघ का रंग कैसा होता है ? मेघ आए कविता, मेघ आए कविता के कवि का नाम, कविता में मेघ का चित्रण किस रूप में किया गया है ? मेघ आए कविता में कौन-कौन अलंकार है ? मेघ कैसे आए हैं । मेघ आए कविता में किसका वर्णन किया गया है? मेघ कहां आए हुए हैं ? मेघ आए कविता में मेघ का किस रूप में वर्णन किया गया है ? मेघ आए कविता में पेड़ किसका प्रतीक है ? मेघ आए कविता  में पीपल की तुलना किससे की गई है ?  बरस बाद सुधि लीनि का अर्थ, मेघ किसका प्रतीक है ? नदी, धूल, पेड़, ताल किसका प्रतीक है? पेड़ किस प्रकार अपनी खुशी व्यक्त कर रहे हैं। सबसे बुजुर्ग व्यक्ति का प्रतीक कौन है ? पेड़ किस प्रकार अपनी खुशी प्रकट कर रहे हैं ? कवि ब

Chandra gahna se lauti ber, poem, चन्द्र गहना से लौटती बेर, केदारनाथ अग्रवाल

चित्र
  चन्द्र गहना से लौटती बेर,  कविता , कवि केदारनाथ अग्रवाल Chandra gahna se lauti ber poem, poet kedar nath Agarwal  "चंद्र गहना से लौटती बेर "  सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल की छायावादी कविता है। यहां कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए  सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है‌। कवि चन्द्र गहना नामक स्थान से लौटती बेर एक खेत के मेड़ पर बैठ कर प्राकृतिक दृश्य देखते हुए कविता लिख रहा है। यहां मैंने कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, कविता और चन्द्र गहना से लौटती बेर की व्याख्या , भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर प्रस्तुत किया हूं  जिससे पाठकों को लाभ मिलेगा ।  Table of contents 1. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता, Chandra gahna se lauti ber poem 2. चन्द्र गहना से लौटती बेर के कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, काव्य गत विशेषता एवं भाषा शैली  biography of poet Kedarnath Agarwal 3. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का भाव एवं काव्य सौंदर्य शिल्प सौंदर्य, अलंकार, भाषा शैली 4. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का प्रश्न उत्तर, questions answers NCERT solutions देखआया चन्द्र गहना। देखता हूं दृश्

कबीरदास का जीवन परिचय, साखियां एवं सबद तथा प्रश्न- उत्तर, Kabirdas ka Jiwan parichay, Sakhiya, Sabad, Questions Answer.

चित्र
 कबीरदास का जीवन परिचय, साखियां एवं सबद का भावार्थ तथा प्रश्न- उत्तर, Kabirdas ka Jiwan parichay, Sakhiya, Sabad, Questions Answer. कबीर कैसे संत थे कबीर का जन्म कब हुआ कबीर का जन्म कहां हुआ कबीर का पालन किसने किया कबीर के गुरु का नाम क्या था कबीर दास किसके विरोधी थे मानसरोवर कहां है? Kabirdas kaise saint the Birthday of kabirdas Birthplace of kabirdas Kabir ke Guru Mansarovar khan hai  कबीरदास निर्गुण काव्य धारा के महान संत कवि थे। इनका जन्म 1398 ई. को काशी में माना जाता है। उन्होंने कभी कागज कलम नहीं छुआ लेकिन अपनी साधना और गुरू रामानंद जी के श्रीमुख मुख से जो आशीर्वचन ग्रहण किया उसके अनुसार प्रेम का ढाई अक्षर ही सारी मानवता, विद्वता और पांडित्य का सार है। तभी तो उन्होंने कहा--  पोथी पढि पढि जग मुआ पंडित भया न कोय ‌। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।। प्रेम और भाईचारे का ऐसा अद्भुत संदेश अन्यत्र दुर्लभ है। वे निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक थे। उनके राम अयोध्या में बसने वाले राम नहीं बल्कि घट घट में बसने वाले निर्गुण निराकार ब्रह्म है। तभी तो उन्होंने कहा  दसरथ सुत तिहु लोक बखाना ‌

Shakti aur kshma शक्ति और क्षमा, रामधारी सिंह दिनकर

चित्र
Shakti aur kshama poem summary  विषय सूची 1.रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय 2. शक्ति और क्षमा कविता 3.शक्ति और क्षमा कविता का भावार्थ 4.शक्ति और क्षमा पाठ का शब्दार्थ 5. शक्ति और क्षमा पाठ का प्रश्न उत्तर 6.क्षमा शोभति उस भुजंग को का क्या भाव है ? 7. शक्ति और क्षमा कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ? 8. शक्ति और क्षमा कविता का सारांश  9. शक्ति और क्षमा कविता से क्या शिक्षा मिलती है ?  Ramdhari Singh Dinkar ka jivan Parichay  रामधारी सिंह दिनकर ‌ का जीवन परिचय कविवर रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार में मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गांव में 23 सितंबर 1908 को हुआ था। बचपन में ही पिता का साया उठने के कारण बड़ी कठिनाई से मैट्रिक पास कर सके। फिर पटना कालेज, पटना से बी. ए. करने के बाद बरबीघा हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक बन गये। फिर विभिन्न सरकारी पदों को सुशोभित करते हुए राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1965 से 1972ई तक भारत सरकार में हिंदी सलाहकार रहे। 24 अप्रेल 1974 को इनका देहांत हो गया। प्रमुख रचनाएं - कुरुक्षेत्र, रेणुका, रश्मि रथी, नीलकुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम आदि। उर्वश

इसे जगाओ (कविता,) कवि - भवानी प्रसाद मिश्र ise jagao, bhawani Prasad Mishra

चित्र
  इसे जगाओ, कविता, कवि - भवानी प्रसाद मिश्र, Ise Jagao, Bhawani Prasad Mishra Ise jagao questions answers , इसे जगाओ कविता का प्रश्न उत्तर , इसे जगाओ पाठ का भावार्थ , इसे जगाओ कविता का मूल भाव क्या है, इसे जगाओ कविता का मुख्य संदेश। कवि सोए हुए व्यक्ति को क्यों जगाना चाहते हैं ? भई, सूरज जरा इस आदमी को जगाओ ! भई, पवन जरा इस आदमी को हिलाओ ! यह आदमी जो सोया पड़ा है, जो सच से बेखबर सपनों में खोया पड़ा है। भई , पंछी इसके कानों पर चिल्लओ  । भई , सूरज ,  जरा इस आदमी को जगाओ। वक़्त पर जगाओ, नहीं तो जब बेवक्त जगेगा यह तो जो आगे निकल गए हैं उन्हें पाने --- घबरा के भागेगा यह। घबरा के भागना अलग है, क्षिप्र गति अलग है, क्षिप्र तो वह है जो सही क्षण में सजग है। सूरज, इसे जगाओ, पवन, इसे हिलाओ, पंछी, इसके कानों पर चिल्लाओ। शब्दार्थ पवन - हवा। बेखबर - अनजान। पंछी - पक्षी। जरा - कुछ, थोड़ा। वक्त - समय। क्षिप्र - तेज, गतिशील। बेवक्त - असमय। सजग - सचेत, जगा हुआ। क्षण - पर, समय। भावार्थ एवं व्याख्या कवि भवानी प्रसाद मिश्र कहते हैं, सवेरा हो गया है और यह आदमी अभी तक सोया हुआ है। संसार का नियम है कि सूर्योदय

सच्ची मित्रता, श्रीराम सुग्रीव की मित्रताRamsugriv mitrta

चित्र
                         सच्ची मित्रता Sachchi mitrta poem 8 class राम सुग्रीव मित्रता, Ramcharitmanas Ram sugriv mitrta, Ramcharitmanas, kishkindha,mitrta ke gun, kise mitra manna chahiye, सच्ची मित्रता का महत्व, सच्ची मित्रता की विशेषता, सच्ची मित्रता क्या होती है ? सच्ची मित्रता के उदाहरण, था सुग्रीव की मित्रता सच्ची मित्रता के उदाहरण हैं।  जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी।। निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।। जिन्ह के असि मति सहज न आई। ते सठ कति हठि करत मिताई।। कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रकटइ अवगुनन्हि दुरावा।। देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित करई।। बिपत्ति काल कर सत गुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुण ऐहा।। आगे कह मृदु बचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई।। जाकर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।। सेवक सठ, नृप कृपण, कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।। सच्ची मित्रता की पहचान यह प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीराम चरित मानस के किष्किन्धाकाण्ड से अंकित है जिसमें श्रीराम ने सुग्रीव को सच्ची मित्रता के बारे में बताया  हैं।  श्र