धन की खोज dhan ki khoj (छात्रों की परीक्षा/www.bimalhindi.in)


Dhan ki khoj धन की खोज



शिक्षा प्रदान करने वाली कहानी जीवन में सफलता हासिल करने में मदद करती है। हमें सदा अपनी बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। उचित अनुचित का ध्यान रखना चाहिए।इस कहानी में कथाकार यही बताने वाले हैं।

 छात्रों ने निवेदन करते हुए कहा''-गुरूजी ! आजकल आप इतने उदास क्यों  हैं, आप के मुखमंडल पर चिंता के छाये बादल हमारे लिए अत्यंत ही दुखदाई है। कृपया इस चिन्ता और उदासी का कारण हमें बताइए। हम यथासंभव उसके निवारण का प्रयत्न करेंगे।''।                                           गुरुजी  ने अपने मुख मंडल की गंभीरता को और गंभीर बनाते हुए कहा--"प्रिय छात्रों ! मेरी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है, परन्तु इस कार्य के संपादन के लिए मेरे पास प्रर्याप्त धन उपलब्ध नहीं हैं। जवान बेटी को भला घर में कब तक बैठाए रखा जा सकता है।और फिर निकट भविष्य में कहीं से कोई धन आने की उम्मीद भी नहीं दिखाई देती है। " ऐसा कहकर गुरु जी कुछ और उदास होने का नाटक कर लिए।                     कुछ सम्पन्न और समर्थवान परिवार के शिष्यों ने कहा--"गुरू जी ! आप बिल्कुल चिंता न करें, मैं अपने पिता जी से इतना धन दिलवा सकता हूं जिससे आप का सारा कार्य आसानी से संपन्न हो जाएगा।  "।     आप हमें सिर्फ आदेश तो दीजिए। गुरु जी का मुखमंडल गंभीर हो गया। उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, नहीं बच्चों,यह उचित नहीं होगा।लोग मुझे लालची कहेंगे। इस तरह मैं अपनी ही नज़रों में गिर जाउंगा । परन्तु हां, एक उपाय है, यदि तुम सब बिना किसी को बताएं,सबकी नज़रों से बचाकर अपने - अपने घरों से कुछ वस्तुएं ला दो तो धीरे धीरे मेरी पुत्री के विवाह के लिए धन का प्रबंध हो जाएगा। इस बात पर सभी शिष्य सहमत हो गए। थोड़े ही दिनों में सभी शिष्य कुछ न कुछ कीमती और उपयोगी वस्तुएं छुप छुपाकर गुरु की सेवा में समर्पित कर दिए।केवल एक शिष्य कुछ भी लाने में असमर्थ रह गया। एक दिन गुरु ने उससे पूछा,क्यो भाई,आपने अभी तक कुछ भी नहीं लाया।क्या आपको अपने गुरु की आज्ञा का कुछ भी ध्यान नहीं है। उस शिष्य ने बड़ी विनम्रता से कहा--गुरूजी क्या कोई ऐसा स्थान है जहां कोई न हो। कोई नहीं तो मैं तो रहता ही हूं। और ईश्वर भी तो सब जगह रहते हैं। फिर मैं चोरी जैसा घिनौना काम कैसे कर सकता हूं।                                      शिष्य की बातें सुनकर गुरु जी आनन्द विभोर हो गए। उन्होंने उसे गले लगा लिया क्योंकि वही सच्चा शिष्य था जिसने सच्ची शिक्षा प्राप्त की थी।                                                                                                    नटी ने कहा, तो फिर आज के ज्ञानीजन चोरी- भ्रष्टाचारी जैसे घिनौना काम क्यों  करते हैं।क्या उन्हें भगवान से भी डर नहीं लगता।दीन हीन की कमाई को अपने बाप का माल समझ कर हाथ साफ करते हैं।       नट ने नटी को समझाया,अरी जानती हो। किसी गुरु ने भी तो उन्हें अपना और पराया का भेद नहीं बताया। और बताते भी कैसे--दरबारी कवि और-----!



शब्दार्थ

प्राचीन - पुराना । विशाल - बहुत बड़ा। प्रांगण - बड़ा आंगन । प्रयोजन - विशेष कारण । पर्याप्त - काफी। स्वीकार - मंजूर । संकोच - हिचक, लज्जा। ग्रहण - स्वीकार। सामग्री - सामान । चेष्टा - कोशिश। अवश्य - ज़रूर । अन्य - और। कुकर्म - बुरा काम । मार्ग - रास्ता । दृढ़ता - मजबूती । प्रमाण - सबूत । धनहीन - धन के बिना। निर्धन - गरीब । सदाचार - अच्छा आचरण । प्रसिद्ध - मशहूर । यशस्वी - जिसका बहुत यश हो। कृतियां। वंचित - रहित ।अशुभ - जो शुभ न हो।


प्रश्नोत्तर Questions Answer

1. गुरूकुल की क्या विशेषता थी ?
उत्तर -  गुरूकुल विशाल और आसपास के इलाके में बहुत प्रसिद्ध था। वहां के आचार्य विद्वान और यशस्वी थे।

2. आचार्य ने अपने शिष्यों के सामने क्या समस्या रखी ?

उत्तर - आचार्य ने अपने शिष्यों को अपनी समस्या बताते हुए कहा , मेरी पुत्री अब विवाह योग्य हो गई है , परन्तु उसके विवाह के लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं ?

3. आचार्य ने धनी विद्यार्थियों का प्रस्ताव स्वीकार क्यों नहीं किया ?

उत्तर - धनी विद्यार्थियों ने आचार्य को प्रस्ताव दिया कि मैं अपने पिता जी से इतना धन मांग कर ला सकता हूं जिससे आपकी कन्या का विवाह धूम धाम से हो जाएगा। शिष्य के इस प्रस्ताव को आचार्य ने यह कहकर ठुकरा दिया कि इससे मैं अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगा। लोग मुझे लोभी कहेंगे। और कहेंगे कि अपनी कन्या का विवाह शिष्यो
 के धन से करना चाहता है।

4. आचार्य ने क्या उपाय बताया ?

उत्तर -- आचार्य ने अपनी समस्या के समाधान हेतु एक उपाय बताया, यदि सभी छात्र सबकी नजरें बचाकर कुछ न कुछ कीमती सामान मुझे लाकर दे तो धीरे धीरे मेरी कन्या के विवाह के लिए धन एकत्रित हो जाएगा। और किसी को कुछ पता भी न चलेगा।

5. एक विद्यार्थी कुछ भी क्यों न ला सका ?

उत्तर -- एक विद्यार्थी कुछ भी नहीं ला सका। पूछने पर उसने बताया कि कहीं भी ऐसा स्थान नहीं है जहां कोई न हो। कोई और नहीं तो मैं तो होता ही हूं। मैं तो अपनी कुकर्म को देखूंगा ही। इसलिए मैं कुछ भी नहीं ला सका।

6.आचार्य ने उस शिष्य को गले से क्यों लगा लिया ?

उत्तर -- आचार्य ने उस शिष्य को गले लगा लिया और कहा , तू ही मेरे द्वारा दी गई शिक्षा को सही रूप में ग्रहण किया है। तू ही मेरा सच्चा शिष्य हैं। तेरा चरित्र दृढ़ है। यह मेरी शिक्षा की सफलता का प्रमाण है।

7. अनुचित ढंग से धन लाने की आज्ञा देने के पीछे आचार्य का क्या उद्देश्य था ? 

उत्तर - आचार्य अपने शिष्यों की परीक्षा लेना चाहते थे। वे देखना चाहते थे कि उन्होंने अपने शिष्यों को आचरण और नैतिकता का जो पाठ पढ़ाया है वह कहां तक सफल हुआ है। उनका आचरण कितना मजबूत है।

8. इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तर - इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कोई कुछ भी कहे, हमें अपने आचरण की पवित्रता पर मजबूती से खड़ा रहना चाहिए। हमें अपने गुरु जैसे आदरणीय व्यक्ति के कहने पर भी सच्चे मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए। 


पढ़ो और समझो

1.इस कहानी का शीर्षक कैसा लगा? आपकी राय में कोई और शीर्षक है तो बताओ।

उत्तर - इस कहानी का शीर्षक धन की खोज ठीक है क्योंकि इस कहानी में आचार्य ने धन की बात कही है। लेकिन यदि इसका शीर्षक 'छात्रों की परीक्षा ' होता तो और अच्छा होता।

विलोम शब्द लिखे

धनवान - गरीब। योग्य - अयोग्य । विशेष - सामान्य । पाप - पुण्य । विशाल - छोटा । पर्याप्त - अपर्याप्त। विश्वास - अविश्वास।

इस कहानी से कुछ विशेषण चुनकर नीचे दिए गए हैं, उनके विशेष्य बताओं।

उत्तर --
 प्रसिद्ध - गुरुकुल । आज्ञाकारी - छात्र । यशस्वी - आचार्य  पर्याप्त - धन । धनवान - शिष्य । 

Posted by Dr. Umesh Kumar Singh, M.A. Ph-D. Bhuli Dhanbad, Jharkhand.

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