मीराबाई के पद, Mirabai ke pad, मेरे तो गिरधर गोपाल

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मीराबाई के पद , भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर

By Dr.Umesh Kumar Singh 

 १ मीराबाई: जीवन परिचय, Mirabai  २. पद - मेरे तो गिरधर,पग घुंघरू बांध  ३ पद का भावार्थ, ४.प्रश्न- उत्तर


Mirabai ke pad, mira kiski diwani thi, Mirabai ka janm sthan,mira ka janm kab hua, mira ka arth, mira Bai ke Guru Kaun the. Mira ke pati Kaun the, mira ka sasural Kha tha.mira ko jahar kisne diya.


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मीराबाई का जीवन- परिचय --


- मीराबाई सगुण भक्ति धारा की प्रमुख भक्त कवयित्री हैं। ये श्रीकृष्ण की अनन्य साधिका थी और श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानती थीं और श्री कृष्ण की दीवानी थी। इनका जन्म कुर्क गांव, (मारवाड़ रियासत) 1498 ई  में और मृत्यु 1546 ई  में हुआ था।

मीराबाई के मूल नाम के संबंध में भी विद्वानों ने अपने-अपने तर्क दिए हैं। कुछ लोग मीरा शब्द का संबंध फ़ारसी के मीर शब्द से जोड़ते हैं जिसका अर्थ परम पुरुष होता है। बाई शब्द गुजरात में पत्नी के लिए प्रयुक्त होता है। इस तरह मीराबाई का अर्थ ईश्वर की पत्नी होता है। दूसरे मत के अनुसार मीरा शब्द संस्कृत के मीर: शब्द का स्त्रीलिंग रूप है, जिसका अर्थ सरस्वती, पृथ्वी, होता है। बाई शब्द गुजरात में स्त्रियों के लिए सम्मान सूचक माना जाता है। इसलिए मीराबाई नाम उनके माता-पिता द्वारा दिया गया नाम ही उचित समझा जाना चाहिए।

     मीराबाई के कुछ पदों में निर्गुण भक्ति का प्रभाव भी दिखाई देता है। संत कवि रैदास से ये काफी प्रभावित थे। कुछ लोगों का मानना ​​है कि वह रैदास जी को अपना गुरु मानती थी। मीराबाई बचपन से ही श्रीकृष्ण से प्रभावित थी। साधु-संतों की संगति से उन्हें बहुत प्रेम था। बचपन में ही उनके पति का देहांत हो गया था।

         मीराबाई अन्य संत कवियों की तरह ही देश में दूर- दूर तक यात्राएं की थी। वह मंदिरों में संतों-महात्माओं के साथ श्रीकृष्ण की भक्ति से संबंधित पदों की रचना कर नाचती - गाती।) यह बात उनके ससुराल वालों को अच्छी नहीं लगती थी। राजपुताना के प्रशस्ति पत्रों, शिलालेखों, दानपत्रों और कुछ प्राचीन चित्रों में माइबाई की जीवनी।]]

अब मीराबाई के जन्म स्थान और ससुराल पर भी विचार करते हैं। इनका जन्म मेड़ता के पास कुड़की गांव में हुआ था, यह निर्विवाद रूप से मान्य है। यह राठौड़ वंश के राव रत्न सिंह के घर बना रहे थे। मीराबाई का विवाह चितौड़ के राणा सांगा के बड़े बेटे भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के सात वर्ष बाद ही भोजराज स्वर्ग चले गए। उस समय की परंपरा के अनुसार मीरा सती नहीं हुई क्योंकि वह अपने को अजर अमर श्रीकृष्ण की चिर सुहाविनी भारतीयों की है।]

      मीराबाई का पद उनके हृदय से निकले सहज प्रेम उद्गार का साकार रूप है। कृष्ण प्रेम की मतवाली मीराबाई ने मन ही मन अपने आराध्य से मिलन के न जाने कितने सपने देखे थे जो उनकी कविताओं में देखने को मिलता है। लेकिन उनकी कविता का मुख्य भाव वियोग है।

मीरा बाई के पद

मीराबाई


                                मीराबाई के पद  - 1


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जा के सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई
छाड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?
संतन ढिग बैठि - बैठि, लोक लाज खोय।
अंसुवन जल सींची सींची, प्रेम बेलि बोय।
अब तो बेलि फैली गयी, आनंद फल होई
दूध की मथानी बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढि लियो, डारि दई छोई।
भगत देखि राजी हुई, जगत देखि रोय। 
दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोहि।


भावार्थ

मीराबाई कहती हैं, मेरे आराध्य देव तो गिरधर गोपाल श्रीकृष्ण ही हैं। जिनके सिर पर मोर पंख का मुकुट है, वही मेरे पति हैं। वह कहती हैं, मैंने श्रीकृष्ण के प्रेम में मतवाली होकर कुल की मर्यादा छोड़ दी है। साधु संतों के बीच रहकर लोक लज्जा का त्याग कर दिया है। श्रीकृष्ण के अलावा इस संसार में मेरा रक्षक नहीं है
     मैंने विरह के अश्रुओं से सींच कर अपने प्रेम की बेल को तैयार किया है।

वह आगे कहती हैं, मैंने दूध में मथानी डालकर खूब प्रेम से उसे बिलोया है। मैंने मक्खन निकाल कर छाछ छोड़ दी है। अर्थात संसार का चिंतन मंथन कर यह पाया गया है कि भगवान की भक्ति ही सत्य है, बाकी सब झूठ। लोग संसार की मोहमाया में पड़ कर ईश्वर को भूल गए हैं।
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                   मीराबाई के पद   २

पग घुंघरू बांधि मीरा नाची
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपनी हो गयी सांची।
लोग कहे मीरा भाय बांवरी, नटिक कहै कुल नासी। 
विस का प्याला राणा प्रेष्या पीवत मीर हासी। 
मीरा के प्रभुत्व गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी। 

                   भावार्थ

मीराबाई कहती हैं, हे प्रभु! आपकी यह दासी अपने पैरों में घुंघरू बांध कर अपने प्रेम में नाच उठी है। अब सारी दुनिया यह जान ले कि मैं अपने प्रभु की स्वयं दासी बन गया हूं। लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है, मेरी सास मुझे कुल कलंकिनी कहती है। राणा जी ने मुझे मारने के लिए विष का प्याला भेजा, फिर भी मैं उस प्याले को पीकर भी जीवित बच गया। श्रीकृष्ण की इस दासी पर जहर का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मीरा कहती है कि मेरे प्रभु तो गिरधर गोपाल श्री कृष्ण हैं। मुझे सहज रूप में उनके दर्शन सुलभ हो गए हैं।

प्रश्न - उत्तर--

1  मीराबाई किसकी दीवानी है? 
उत्तर - मीरा श्रीकृष्ण की दीवानी है।

2 लोग मीराबाई को बांवरी क्यों कहते हैं?

उत्तर - लोग मीरा का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम भाव को देख कर उसे पगली या दीवानी कहते थे। वह कुल की लोक लाज छोड़ कर साधु संतों के साथ श्रीकृष्ण के मंदिरों में घूमती थी। इसलिए लोग उन्हें बांवरी कहते हैं।

३ मीराबाई जगत को देखकर रोती क्यों है?

उत्तर-- संसार में लोग मोह माया में खोये हैं, वे अज्ञानी हैं, यह देखकर मीरा को रोना आता है।
4. मीराबाई के लिए जहर का प्याला किसने भेजा था ?
उत्तर - मीराबाई के लिए जहर का प्याला राणा ने भेजा था।
5. गिरधर गोपाल में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर - गिरधर गोपाल में ग वर्ण की आवृत्ति है, इसलिए अनुप्रास अलंकार है।
6.अविनासी का क्या मतलब है ?
उत्तर - अविनाशी का मतलब है, अजय अमर। अर्थात श्री कृष्ण।





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