Shakti aur kshma शक्ति और क्षमा, रामधारी सिंह दिनकर

शक्ति और क्षमा,रामधारी सिंह दिनकर

Shakti aur kshama poem summary 

विषय सूची

1.रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
2. शक्ति और क्षमा कविता
3.शक्ति और क्षमा कविता का भावार्थ

4.शक्ति और क्षमा पाठ का शब्दार्थ

5. शक्ति और क्षमा पाठ का प्रश्न उत्तर

6.क्षमा शोभति उस भुजंग को का क्या भाव है ?

7. शक्ति और क्षमा कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ?

8. शक्ति और क्षमा कविता का सारांश 
9. शक्ति और क्षमा कविता से क्या शिक्षा मिलती है ?

 Ramdhari Singh Dinkar ka jivan Parichay  रामधारी सिंह दिनकर ‌ का जीवन परिचय


कविवर रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार में मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गांव में 23 सितंबर 1908 को हुआ था। बचपन में ही पिता का साया उठने के कारण बड़ी कठिनाई से मैट्रिक पास कर सके। फिर पटना कालेज, पटना से बी. ए. करने के बाद बरबीघा हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक बन गये। फिर विभिन्न सरकारी पदों को सुशोभित करते हुए राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1965 से 1972ई तक भारत सरकार में हिंदी सलाहकार रहे। 24 अप्रेल 1974 को इनका देहांत हो गया।

प्रमुख रचनाएं - कुरुक्षेत्र, रेणुका, रश्मि रथी, नीलकुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम आदि। उर्वशी के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला। संस्कृति के चार अध्याय इनके गहन अध्ययन को दर्शाता है। गद्य पद्य मिला कर उन्होंने लगभग पचासों रचनाएं हिन्दी साहित्य को प्रदान की है।

दिनकर जी अपने ओजस्वी और प्रखर व्यक्तित्व के लिए सदैव याद रहेंगे। हिंदी जगत में  इनका नाम अमर रहेगा।

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                 शक्ति और क्षमा ( कविता )

Shakti aur kshma poem


क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा।

पर नर - व्याघ्र , सुयोधन तुमसे

कहो, कहां, कब हारा ?


क्षमाशील हो रिपु समक्ष,

तुम हुए विनत जितना ही।

दुष्ट कौरवों ने तुमको,

कायर समझा उतना ही।


क्षमा शोभती उस भुजंग को,

जिसके पास गरल हो।

उसको क्या जो दंतहीन,

विषरहित, विनीत, सरल हो।


तीन दिवस तक पंथ मांगते,

रघुपति सिन्धु किनारे।

बैठे पढ़ते रहे छंद,

अनुनय के प्यारे-प्यारे।


उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से।

उठी अधीर धधक पौरुष की,

आग राम के शर से।


सिंधु देह धर 'त्राहि-त्राहि'

करता आ गिरा शरण में।

चरण पूज, दास्तां ग्रहण की,

बंधा मूढ़ बंधन में।



सच पूछो ,तो सर में ही, 

बसंती है दीप्ति विनय की।

संधि -वचन संपूज्य उसी का, 

जिसमें शक्ति विजय की। 

सहनशीलता, क्षमा, दया को,

 तभी पूजता जग है।

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।


शक्ति और क्षमा कविता का भावार्थ


महाकवि दिनकर जी कहते हैं, क्षमा, दया, तप, त्याग इन सबका महत्व तब तक नहीं है, जब तक कि आप के अन्दर शौर्य और शक्ति का सामर्थ्य नहीं है। बिना शक्ति और सामर्थ्य के ये सारी बातें बेकार की है। वे आगे कहते हैं, दुर्योधन को बहुत समझाया, उससे अनुनय विनय की गई, लेकिन उसने एक बात भी न सुनी। शत्रु के समक्ष क्षमाशील होने से शत्रु तुम्हें कायर समझेंगे। युद्ध के मैदान में विनम्रता कायरता का प्रतीक माना जाता है।

वे आगे कहते हैं,  विषधर सर्प का क्षमा क्षमा माना जाता है। यदि कोई विषधर क्षमा करें तो उस क्षमा का महत्व है, विषहीन यदि कहें कि हमने क्षमा किया तो उस क्षमा का कोई मतलब नहीं है। उसके पास विष है ही नहीं, वह काट कर भी क्या नुकसान कर लेगा।


कवि विनम्रता के मूल्य के लिए शक्ति के महत्व का उदाहरण देते हुए कहते हैं, श्रीराम तीन दिन तक समुद्र तट पर बैठ कर समुद्र देवता से रास्ते की मांग करते रहे, फल क्या मिला ? समुद्र उफनता रहा, उछाल मारता रहा। लेकिन जब श्रीराम ने समुद्र को सुखाने के लिए जैसे ही बाणों का संधान किया, समुद्र त्राहि त्राहि कहकर चरणों में गिर गया। ये होती है शक्ति और सामर्थ्य।

सहनशीलता, क्षमा, दया सब उसी के भूषण हो सकते हैं, जिसके अंदर शक्ति और सामर्थ्य हो।


शब्दार्थ

मनोबल - मन की शक्ति  ( strength of mind )

नर - व्याघ्र - = वह व्यक्ति जो बाघ की तरह हो। ( Tiger man )

सुयोधन - दुर्योधन का वास्तविक नाम।

रिपु - शत्रु ( enemy )

समक्ष - सामने  ( in front of )

विनत - विनम्र , झुका हुआ  ( polite )

कायर - डरपोक ( coward )

भुजंग - सांप ,( snake )

गरल - विष ( poison )

दंतहीन - दांतों के बिना ( teeth less )

विष रहित - जहर के बिना ( poison less )

दिवस - दिन ( day )

पंथ - रास्ता ( way )

रघुपति - श्रीराम चन्द्र

सिंधु - समुद्र ( sea )

अनुनय - प्रार्थना ( prayer )

नाद - आवाज ( voice )

सागर  - समुद्र (sea )

अधीर - बेचैन ( restless )

पौरुष - पुरूषत्व ( manhood )

शर - तीर ( arrow )

देह - शरीर (  body )

धर - धारण कर ( having )

चरण - पैर ( feet )

दासता - गुलामी ( slavery )

ग्रहण - स्वीकार ( accept )

दीप्ति - चमक ( shine )

संपूज्य - पूजनीय ( respected )

विजय - जीत ( victory )

दर्प - घमंड ( proud )


शक्ति और क्षमा पाठ का प्रश्न उत्तर


1. राम कितने दिनों तक पथ मांगते रहे ?

उत्तर - श्रीराम तीन दिन तक पथ मांगते रहे।

2. श्री राम किससे पथ मांगते रहे ?

उत्तर - श्रीराम समुद्र से पथ मांगते रहे।


3. श्रीराम के शांति पूर्वक पथ मांगते रहने पर समुद्र ने क्या किया ?
उत्तर - श्रीराम शांति पूर्वक पथ मांगते रहे और समुद्र उफनता रहा, और लहरें उठाता रहा।

4. शांति पूर्वक पथ मांगने पर रास्ता नहीं मिलने पर श्रीराम ने क्या किया ?

उत्तर - जब शांति पूर्वक आग्रह करने पर रास्ता नहीं मिला तो श्रीराम क्रोधित हो गए। उन्होंने समुद्र को सुखाने की धमकी दी। तब समुद्र भयभीत होकर उनके सामने नतमस्तक हो गया।

 5. श्रीराम समुद्र से पथ क्यों मांगते थे ?

उत्तर - लंका का राजा रावण श्रीराम की पत्नी का हरण कर लिया था। वे लंका पर चढ़ाई करने के लिए अपनी सेना के साथ वहां जाना चाहते थे। इसलिए श्रीराम समुद्र से पथ मांगते रहे।

6. शक्ति और क्षमा कविता के अनुसार कौरवों ने किसे कायर समझा ?

उत्तर - शक्ति और क्षमा कविता के अनुसार कौरवों ने पाण्डवों को कायर समझा।

7. क्षमा करना किस भुजंग को शोभा देता है ?

उत्तर - क्षमा करना उस भुजंग को शोभा देता है जिसके पास गरल अर्थात विष हो। 


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