धर्मनिरपेक्षता ( secularism) पंथनिरपेक्षता

 

धर्मनिरपेक्षता ( secularism)            पंथनिरपेक्षता 

धर्मनिरपेक्षता क्या है। पंथनिरपेक्षता किसे कहते हैं? Secularism in hindi  Dharamnirpekshta kya hai.

धर्मनिरपेक्षता का महत्व हिन्दी में 

धर्मनिरपेक्षता (जिसे पंथनिरपेक्षता भी कहा जाता है) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो राज्य और धर्म के संबंधों को परिभाषित करती है। इसका मूल विचार यह है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता और वह सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करता है।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ

सरल शब्दों में, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य या सरकार किसी भी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देगी, न ही किसी धर्म के साथ भेदभाव करेगी। इसके बजाय, यह सभी धर्मों को समान सम्मान देगी और नागरिकों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने, न करने या बदलने की पूरी स्वतंत्रता देगी।

इसके मुख्य पहलू हैं:

 * राज्य और धर्म का पृथक्करण: इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य धर्म के खिलाफ है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक मामलों में राज्य हस्तक्षेप न करे और राज्य के निर्णयों पर धर्म का कोई प्रभाव न पड़े।

 * सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान: धर्मनिरपेक्षता का लक्ष्य सभी धर्मों को समान दर्जा, मान्यता और समर्थन देना है। यह किसी भी धर्म को दूसरे धर्मों से श्रेष्ठ नहीं मानता।

 * धार्मिक स्वतंत्रता: यह प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों और मान्यताओं का पालन करने, प्रचार करने या न करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो किसी धर्म में विश्वास नहीं करते।


भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा

भारत एक बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं। ऐसे में, भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पश्चिमी देशों से थोड़ी भिन्न है:

 * पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (Western Secularism): पश्चिमी देशों में, विशेषकर अमेरिका में, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ राज्य और धर्म का पूर्ण पृथक्करण है। राज्य धार्मिक मामलों में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करता।

 * भारतीय धर्मनिरपेक्षता (Indian Secularism): भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दृष्टिकोण अधिक समावेशी है, जिसे 'सर्व धर्म समभाव' (सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान) के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब है कि राज्य धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर धर्म के आंतरिक मामलों में सकारात्मक रूप से हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए, जैसे अस्पृश्यता)।


भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता


भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता एक मौलिक सिद्धांत है। 42वें संशोधन (1976) द्वारा संविधान की प्रस्तावना में "धर्मनिरपेक्ष" शब्द जोड़ा गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने वाले कुछ प्रमुख प्रावधान:

 * प्रस्तावना: "धर्मनिरपेक्ष" शब्द भारत को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित करता है।

 * मौलिक अधिकार:

   * अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता।

   * अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।

   * अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें किसी भी धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता शामिल है। ये अनुच्छेद धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता भी देते हैं।

 * कोई राजकीय धर्म नहीं: भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। राज्य किसी विशेष धर्म को संरक्षण नहीं देता।

 * कानूनी समानता: सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, कानून के समक्ष समान हैं।

धर्मनिरपेक्षता का महत्व


धर्मनिरपेक्षता का महत्व कई कारणों से है:

 * सामाजिक सद्भाव और एकता: यह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शांति, सहिष्णुता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है, जिससे सामाजिक सद्भाव बना रहता है।

 * लोकतंत्र की मजबूती: यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक शक्ति किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में न रहे, जिससे लोकतांत्रिक सिद्धांत मजबूत होते हैं।

 * मानवाधिकारों की रक्षा: यह नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है और धर्म के आधार पर होने वाले उत्पीड़न या भेदभाव को रोकता है।

 * मानव कल्याण को बढ़ावा: यह नैतिकता और मानव कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करता है, जो सभी धर्मों का मूल उद्देश्य भी है।

कुल मिलाकर, धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा सिद्धांत है जो समावेशी समाज का निर्माण करता है, जहां सभी नागरिक समान रूप से अपने अधिकारों का उपभोग कर सकें और बिना किसी धार्मिक पूर्वाग्रह के सम्मान के साथ जी सकें।


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