कौन पार फिर पहुंचाएगा, कविता, महादेवी वर्मा, kaun par phir pahuchaega

 
कौन पार फिर पहुंचाएगा

कौन पार फिर पहुंचाएगा, कविता, महादेवी वर्मा, kaun par phir pahuchaega

टकराएगा नहीं आज उद्धत लहरों से,
कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुंचाएगा ?
अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे,
फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खींचे,
पर पहुंचेगा पंथी दूसरे तट पर उस दिन,
जब चरणों के नीचे सागर लहराएगा।

गर्त शिखर बन , उठे लिए भंवरों का मेला,
हुए पिघल ज्योतिष्क तिमिर की निश्छल बेला,
तू मोती के द्वीप स्वप्न में रहा खोजता,
तब तो बहता समय शिला - सा जम जाएगा,
लौ से दीप्त देव - प्रतिमा की उज्ज्वल आंखें,
किरणें बनी पुजारी के हित वर की पांखें,
वज्र शिला पर गढ़ी ध्वशं की रेखाएं क्या ?,
यह अंगारक हास नहीं पिघला पाएगा।

धूल पोंछ कांटे मत गिन छाले मत सहला
मत ठंडे संकल्प आंसुओ से तू बहला,
तुझसे हो यदि अग्नि - स्नात यह प्रलय महोत्सव
तभी मरण का स्वस्ति - गान जीवन गाएगा
टकराएगा नहीं आज उन्मद लहरों से
कौन ज्वार फिर तुझे दिवस तक पहुंचाएगा

कवयित्री - महादेवी वर्मा 

टिप्पणियाँ

Recommended Post

Bade Ghar ki Beti , story, बड़े घर की बेटी, कहानी , प्रेमचंद

फूल और कांटा (Phul aur Kanta) poem

1.संपादन ( sampadan) 2. संपादन का अर्थ एवं परिभाषा तथा कार्य 3.संपादन के सिद्धांत

चेतक ( कविता ) Chetak horse

बच्चे काम पर जा रहे हैं , कविता, कवि राजेश जोशी, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर, राजेश जोशी का जीवन परिचय, Bachche kam pr ja rhe hai poem, 9th class hindi