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बड़े घर की बेटी , कहानी Bade Ghar ki Beti, story, premchand



"बड़े घर की बेटी" प्रेमचंद द्वारा रचित एक आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानी है। यह कहानी सर्वप्रथम 1910 ई में जमाना नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी । परन्तु इस कहानी की प्रासंगिकता आज और बढ़ गई है, क्योंकि संयुक्त परिवार का विघटन दिन पर दिन बढता जा रहा है। इस कहानी में प्रेमचंद ने उच्च वर्ग की पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों और मूल्यों का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। लेखक ने आनंदी का चरित्र प्रस्तुत कर यह बताने का प्रयास किया है कि बड़े घर की बेटियां तभी बड़े घर की बेटी कहलाने की हकदार हैं जब उनमें ससुराल के प्रति ममता, सहिष्णुता और संयुक्त परिवार के प्रति मोह हो। यहां हमने बड़े घर की बेटी कहानी का सारांश, कहानी का उद्देश्य, प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण, शीर्षक की सार्थकता और प्रमुख प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिससे पाठकों को कहानी समझने में मदद मिलेगी।


Table of contents

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लेखक प्रेमचंद का जीवन परिचय


मुंशी प्रेमचंद का जन्म (सन् 1880) उत्तर प्रदेश के लमही नामक गाँव में हुआ था। घर अवस्था खराब होने के कारण जैसे तैसे बी। ए। किया । प्रेमचंद आगे पढ़ना चाहते थे, किंतु घर की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें सरकारी स्कूल में नौकरी करनी पड़ी। मृत्यु 1936 में हुई।

प्रमुख रचनाएँ

सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गवन, गोदान।  उन्होंने लगभग तीन हजार कहानियाँ लिखी हैं जो मानसरोवर नाम से आठ भागों में संग्रहित है। दो बैलों की कथा, कफ़न, नमक का दारोगा, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी आदि इनकी प्रतिनिधि कथाएँ हैं।

प्रेमचंद की सौतेली मां ने उनकी शादी उनसे उम्र में बड़ी लड़की से करवा दी थी।वह स्वभाव से बहुत बड़ी क्रूर थी। प्रेमचंद से उसकी नहीं बनती थी। बाद में उन्होंने शिवरानी नामक बाल विधवा से विवाह किया।
प्रेमचंद की कहानियों में ग्रामीण संस्कृति और परंपरा का सुन्दर वर्णन मिलता है। उनकी भाषा शैली भावानुकूल और वातावरण के अनुकूल होती है। प्रेमचंद हिन्दी कहानी जगत के सम्राट माने जाते हैं।


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बड़े घर की बेटी

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बड़े घर की बेटी कहानी का सारांश


बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गांव के जमींदार और नंबर दार थे। किसी जमाने में उनके पितामह बड़े धनवान व्यक्ति थे।  लेकिन बदलते समय के साथ- साथ उनकी लगभग सारी सम्पत्ति समाप्त हो चली थी।  वर्तमान में वार्षिक आय एक हजार रुपए से अधिक नहीं होगी।

ठाकुर बेनीमाधव सिंह के दो बेटे थे - बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह और छोटे का नाम लाल बिहारी सिंह।

श्रीकंठ सिंह बी. ए पास कर नौकरी करते थे। उनका शारीरिक कद काठी बिल्कुल सामान्य था, इसके विपरीत छोटा भाई लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ मुखरा, चौड़ी छाती। उनका दो ही मुख्य काम था-- सबेरे सबेरे दो सेर भैंस का दूध पीना और पहलवानी करना।

श्रीकंठ सिंह अंग्रेजी पढ़े थे, लेकिन अंगरेजीयत से बिल्कुल अलग थे। पाश्चात्य परंपराओं से बिल्कुल अलग। संयुक्त परिवार के प्रबल समर्थक और ऐसी स्त्रियों के कट्टर विरोधी थे जो सम्मिलित परिवार के विरुद्ध कुछ बोलतीं थीं। कभी-कभी इस विषय पर उनकी पत्नी से भी मतभेद हो जाया करता था। प्राचीन भारतीय परंपराओं के वे प्रबल समर्थक थे।  गांव में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे।

आनंदी एक उच्च कुल की लड़की थी। उसके पिता जी भूप सिंह एक छोटी सी रियासत के ताल्लुकदार थे। विशाल भवन, हाथी घोड़े, नौकर चाकर, बाज, झाडफनूस सब कुछ था जो एक ताल्लुक दार के पास होने चाहिए। आनंदी चार बहनों में सबसे छोटी थी। वह सभी बहनों में ज्यादा रूपवती और गुणवती थी। माता पिता की वह लाडली संतान थी। एक दिन श्रीकंठ सिंह उनके यहां किसी आयोजन के लिए चंदा मांगने आए थे, भूप सिंह उनके स्वभाव पर रीझ गए और धूमधाम से आनंदी का श्रीकंठ सिंह से विवाह कर दिए।

आनंदी जब ससुराल आई तो यहां का रंग ढंग कुछ अलग ही देखा । जिस टिम टाम की उसे बचपन से आदत पड़ी थी वह यहां बिल्कुल न था। हाथी घोड़े की बात छोड़िए, एक सजी हुई बहली तक न थी। न जमीन पर कालीन, न दिवारों पर तस्वीरें।  परन्तु थोड़े ही दिनों में आनंदी अपने आप को इन परिस्थितियों के अनुरूप ढाल ली। जैसे विलास के सामान देखें ही न हो।

एक दिन की बात है। दोपहर के समय लाल बिहारी सिंह दो चिड़िया लेकर आए। उन्होंने आनंदी से कहा - जल्दी से पका दो, मुझे जोरों से भूख लगी है। भोजन पहले से तैयार था। खैर, नया व्यंजन बनाने बैठी तो देखा हांडी में घी पाव भर से ज्यादा नहीं था। बड़े घर की बेटी किफायत क्या जाने ? उसने सब घी मांस में डाल दिया। लाल बिहारी खाने बैठे तो दाल में घी न देखकर बिगड़ गये। उसने कहा, दाल में घी क्यों नहीं है ?

आनंदी ने सरल भाव से कहा, घी थोड़े ही थे, सब मांस में डाल दिए। लाल बिहारी ने कहा अभी परसों ही तो आए थे, सब समाप्त हो गया। आनंदी बोली, आज तो पाव भर ही बचा होगा। लाल बिहारी को भाभी की ये बातें अच्छी नहीं लगी, उसने तुनक कर कहा, मायके में जैसे घी की नदी बहती हो !

स्त्री सब-कुछ सह सकती है परन्तु मैके की निंदा नहीं सह सकती। आनंदी ने मुंह फेरकर कहा, हाथी मरा भी तो नौ लाख का। इतने घी तो वहां नित्य नाई कहार का जाते हैं।

लाल बिहारी जल गया। थाली उठाकर पटक दिया और बोला जी चाहता है, जीभ खींच लूं। आनंदी को भी क्रोध आ गया, बोली, वे होते तो आज मजा चखा देते। वह अनपढ़, उजड्ड ग्वार से रहा न गया, उसने खड़ऊ उठाया और आनंदी की ओर फेंक दिया और बोला, जिसके गुमान पर फूली हुई हो, उसे भी देखूंगा और तुम्हें भी। आनंदी ने हाथ से खड़ाऊ रोक लिया, सिर तो बच गया लेकिन ऊंगली में चोट लग गई। वह खून का घूंट पीकर अपने कमरे में आ गई , क्योंकि उसका पति घर में नहीं था।

आनंदी दो दिन तक कोप भवन में रही। न कुछ खाया न कुछ पीया। बस श्रीकंठ सिंह की राह देखती रही। अंतः में शनिवार को घर आए तो घर का माहौल कुछ बदला बदला था। दरवाजे पर प्रतिदिन की भांति चौपाल जमी थी। जब भोजन का समय आया तो पंचायत उठी। एकांत देखकर लाल बिहारी ने भाई से कहा, भैया! आप जरा भाभी को समझा दीजियेगा, मुंह संभालकर बात किया करें नहीं तो एक दिन अनर्थ हो जाएगा। मैके के सामने तो हमलोगों को कुछ समझती ही नहीं। 

श्रीकंठ सिंह खा पीकर आनंदी के पास गए। कुछ इधर उधर की बातें करने के बाद आनंदी से कहा, आजकल  घर में यह क्या उपद्रव मचा रखा है ? 
आनंदी ने कहा, मेरे भाग्य का फेर है, नहीं तो एक ग्वार छोकरा जिसे चपरासीगिरी करने का शऊर नहीं, वह मुझे खड़ऊ
 से मारकर यूं न अकडता। उसने सारा हाल अपने  पति श्रीकंठ सिंह को सुना दिया। स्त्री का अचूक हथियार आंसू होता है जो उनकी पलकों पर बराबर तैनात रहता है। आनंदी ने भी वही किया। पत्नी की आंखों में आंसू देख श्रीकंठ सिंह जैसे धैर्य वान पुरुष भी बेचैन हो गये। जैसे तैसे रात कटी। सुबह उठकर उन्होंने अपने पिता के पास जाकर कहा, दादा ! अब इस घर में मेरा गुज़ारा नहीं होगा।


उन्होंने आगे कहा, आप के घर में अब अन्याय और हठ का प्रकोप बढ़ गया। मैं बाहर रहता हूं और मेरे पीठ पीछे मेरी स्त्री पर जूते खड़ाऊ से प्रहार किया जाता है। अब चाहे वह घर में रहे या मैं रहूंगा। बेनीमाधव सिंह ने बेटे को बहुत समझाया पर वह अपनी बात पर अड़ा रहा। इस बीच गांव के भी कुछ लोग तमाशा देखने वहां बिन बुलाए मेहमान की तरह आ गये।  
श्रीकंठ सिंह ने अंतिम निर्णय सुनाया, यदि आप मुझे यहां रखना चाहते हैं तो उससे कहिए कि जहां चाहे वहां चला जाए।

लाल बिहारी दरवाजे के चौखट पर चुपचाप बड़भाई की बातें सुन रहा था। वह बड़े भाई की बड़ी इज्जत करता था। उसे यह अंदाज नहीं था कि बात यहां तक आ जाएगी। श्रीकंठ सिंह भी उसे बहुत स्नेह करते थे। इलाहाबाद से आते तो उसके लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाते। लेकिन आज बात बिल्कुल उलटी थी। 

अपने भाई के मुंह से ऐसी हृदय विदारक बातें सुनकर लाल बिहारी सिंह को बड़ी ग्लानि हुई। उसे लगा कि भैया मुझे डांट देते, दो चार तमाचे लगा देते, लेकिन यह कहना कि मैं उसका मुंह नहीं देखना चाहता, लाल बिहारी से सहा नहीं गया। वह रोता हुआ घर आया , कपड़े पहने और आनंदी के द्वार पर आकर बोला, भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि वे अब मेरे साथ इस घर में नहीं रहेंगे। अब वे मेरा मुंह नहीं देखना चाहते, इसलिए मैं जाता हूं। उन्हें फिर मुंह न दिखाऊंगा। मुझसे जो कुछ अपराध हुआ, उसे क्षमा करना। यह कहते कहते लाल बिहारी का गला भर आया।

आनंदी तो लाल बिहारी की शिकायत की लेकिन अब मन ही मन पछता रही थी। वह स्वभाव से दयालु थी। उसे तनिक भी अंदाजा नहीं था कि बात यहां तक आ जाएगी। वह मन ही मन अपने पति पर झुंझला रही थी कि वे इतने गरम क्यों हो जाते हैं। लाल बिहारी की करूण बातें सुनकर उसका रहा सहा क्रोध भी पानी हो गया।

आनंदी ने श्रीकंठ सिंह से कहा, लाल बाहर खड़े रो रहे हैं। श्रीकंठ ने कहा, मैं क्या करूं ? आनंदी बोली, मेरे जीभ में आग लगे जो मैंने यह झगड़ा बढ़ाया। ऐसा न हो कि लाल कहीं चल दें। मैं नहीं जाऊंगा। श्रीकंठ सिंह बोले। अब क्या होगा? लाल बिहारी घर से निकलने वाले ही थे कि आनंदी ने उनका हाथ पकड़ लिया। बोली, तुम्हें मेरी कसम है जो एक कदम भी आगे बढ़ाया। 

अब तक श्रीकंठ सिंह का भी मन पिघल चुका था। उन्होंने आगे बढ़कर  लाल बिहारी को गले लगा लिया। बेनीमाधव सिंह ने जब दोनों भाइयों को गले मिलते देखा तो वे बहुत खुश हुए। उनके मुख से निकला, बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं जो बिगड़े काम बना देती हैं। चारों ओर आनंदी की प्रशंसा हो रही थी।


बड़े घर की बेटी कहानी का उद्देश्य, main them of story Bare Ghar ki Beti


बड़े घर की बेटी कहानी प्रेमचंद द्वारा रचित एक आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानी है। इस कहानी में प्रेमचंद ने उच्च मध्यवर्गीय परिवार के आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों को उजागर करने का सफल प्रयास किया है। इस कहानी के द्वारा लेखक ने संयुक्त परिवार के महत्व और उपयोगिता को स्थापित किया है।साथ ही आनंदी के चरित्र द्वारा एक बड़ घर की बेटी के कर्तव्य को भी स्थापित किया है ‌। इस कहानी का उद्देश्य है कि स्त्रियों पर ही परिवार में सामंजस्य स्थापित करने का मुख्य दायित्व होता है। वह चाह ले तो घर की बिगड़ती हुई स्थिति पर भर में संभल सकती हैं। भटकते हुए पुरुष को सही मार्ग पर ला सकती है।

बड़े घर की बेटी कहानी का मुख्य पात्र आनंदी का चरित्र चित्रण character of Anandi


आनंदी बड़े घर की बेटी कहानी की मुख्य पात्र हैं। यह बात इस कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट है। वह एक धनवान ताल्लुकदार की सुन्दर, रूपवती और गुणवती लाडली बेटी है। अपनी सूझबूझ से वह टूटते बिखरते पारिवारिक रिश्तों को संभाल लेती है। संयोग की बात है कि उसका विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ जहां उसके लायक सुख सुविधाओं का सर्वथा अभाव है। मैके में उसके पास नौकर चाकर हाथी घोड़े सब कुछ थे, लेकिन यहां कुछ भी ऐसा नहीं था। फिर भी वह शीघ्र ही अपने आप को इन परिस्थितियों में ढाल लेती है। वह घर का सारा काम काज खुद ही करती है। भोजन बनाने से लेकर सबको अपने हाथ से खाना खिलाती थी। 

आनंदी संयुक्त परिवार की महत्ता को भी खूब समझती थी। परन्तु अपना और अपने मैके के अपमान को वह सहन नहीं कर सकती थी। यह स्त्री की खाश विशेषता होती है जो उसमें भी थी।

आनंदी जितनी रूपवती थी उतनी समझदार भी थी। जब उसके पति परिवार से अलग होने की जिद पर अड़ जाते हैं तो वह मन ही मन नाराज भी होती है। उसे अपने आप पर भी गुस्सा आता है जब बात बिल्कुल बिगड़ने की स्थिति आ जाती है। वह संयुक्त परिवार की पक्षधर है। जब उसके देवर लाल बिहारी घर छोड़कर जाने लगते हैं तो उसे अपने भूल का अहसास होता है और लाल बिहारी सिंह पर दया भी आती है। वह आगे बढ़ कर उसे जाने से रोक लेती है और दोनों भाइयों में सुलह भी करवा देती है। इस तरह वह बिखडते परिवार को टूटने से बचाने में मदद करती है। बड़प्पन की सारी खूबियां आनंदी के चरित्र में विद्यमान हैं। आनंदी एक आदर्श गृहणी है।


लाल बिहारी सिंह का चरित्र चित्रण, Lal Bihari Singh character

लाल बिहारी सिंह ठाकुर बेनीमाघव सिंह  का छोटा पुत्र हैं। वह शरीर से बलवान और हृष्ट पुष्ट नौजवान है। उसका काम भैंस का दूध पीना और पहलवानी करना है। वह स्त्रियों से अपने आप को श्रेष्ठ मानता है इसलिए उसकी भाभी आनंदी से उसकी पटती नहीं है। वह उज्जड, और मोटे बुद्धि का इंसान है, अपने क्रोध को वह काबू में रखने में असमर्थ होता है। यही कारण है कि वह अपनी भाभी पर भी खड़ऊ से प्रहार कर देता है।

अपने झूठे अभिमान के लिए वह आनंदी की शिकायत अपने देवतुल्य बड़े भाई से भी करने में संकोच नहीं करता। लेकिन बात बिगड़ जाने पर उसे बहुत पश्चाताप भी होता है। 

लाल बिहारी सिंह अपने बड़े भाई श्री कंठ सिंह का बहुत आदर सम्मान करता है। उनके सामने वह चारपाई पर बैठना भी उचित नहीं समझता है। जब उसके बड़े भाई उसका मुंह देखने से भी इंकार कर जाते हैं तो उसे अपने किए पर बहुत पछतावा होता है और वह अपनी भाभी आनंदी से माफी मांगने में भी नहीं हिचकता है। बड़े भाई श्रीकंठ सिंह के प्रेम और स्नेह पाने के लिए वह वह सब कुछ करने को तैयार हो जाता है। इस तरह लाल बिहारी सिंह का चरित्र एक आदर्शोन्मुखी चरित्र है।

संयुक्त परिवार की समस्या और कहानी बड़े घर की बेटी


कहानी बड़े घर की बेटी में कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी ने संयुक्त परिवार की समस्या को बड़ी कुशलता से चित्रित किया है। संयुक्त परिवार की मान मर्यादा और प्रतिष्ठा को सम्हालना आज एक बड़ी समस्या है। कुछ छोटी छोटी बातों को नजरंदाज कर दिया जाए तो संयुक्त परिवार एक आदर्श पारिवारिक व्यवस्था मानी जाती है। लेकिन वर्तमान समय में संयुक्त परिवार बिखडता जा रहा है। बड़े घर की बेटी कहानी में प्रेमचंद ने इसी समस्या को समाज के सामने लाने का प्रयास किया है। और साथ ही यह भी बताने का प्रयास किया है कि संयुक्त परिवार को सम्हालने की पूरी क्षमता घर की स्त्रियों में होती है। घर की स्त्रियां अपनी सहनशीलता, धैर्य और सूझबूझ से विखडते परिवार को सम्भाल सकती हैं और अपने बड़प्पन की मिशाल प्रस्तुत कर सकतीं हैं।

बड़े घर की बेटी कहानी का प्रश्न उत्तर, questions answers of Bade Ghar ki Beti


1.बेनीमाधव सिंह कौन थे ?
उत्तर - बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गांव के जमींदार और नंबर दार थे।

2.  ठाकुर बेनीमाधव सिंह के दोनों बेटे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर -- ठाकुर बेनीमाधव सिंह के दो बेटे थे। बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ सिंह और छोटे बेटे का नाम लाल बिहारी सिंह था। श्रीकंठ सिंह बी ए पास करके नौकरी करते थे। उनके मन में भारतीय परंपराओं के प्रति अगाध श्रद्धा थी। संयुक्त परिवार के प्रबल समर्थक थे। उनकी पत्नी का नाम आनंदी था।
लाल बिहारी सिंह हृष्ट पुष्ट नौजवान थें। भैंस का दूध पीना और पहलवानी करना उनका काम था। वे स्त्रियों को हीन भावना से देखते थे। अपने बड़े भाई का वे बहुत आदर सम्मान करते थे।

3. बी ए ' --  इन्हीं दो अक्षरों ने उनके शरीर को निर्बल और चेहरे को कांतिहीन बना दिया था। ' -- इस कथन से  शिक्षा के किस दोष का पता चलता है ?

उत्तर -- इस कथन से यह पता चलता है कि बच्चे पढ़ाई तो करते हैं लेकिन स्वास्थ्य और शरीर पर ध्यान नहीं देते। पढ़ाई में केवल मानसिक मजबूती प्रदान करने के चक्कर में शारीरिक सुदृढ़ीकरण कहीं पीछे छूट जाता है।

4. श्रीकंठ पढे लिखे होकर भी गांव में क्यों लोकप्रिय थे ?

उत्तर -  श्रीकंठ पढे लिखे होकर भी गांव के उत्सवों में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। रामलीला उत्सव में स्वयं भी कोई पात्र का अभिनय किया करते। लोगों से मिलते जुलते। इसलिए वे गांव में लोकप्रिय थे।

5. गांव की ललनाएं श्रीकंठ की निंदक क्यों थी ?

उत्तर - श्रीकंठ सिंह संयुक्त परिवार के प्रबल समर्थक थे। जो स्त्रियां परिवार के साथ मिलकर नहीं रहना चाहती थी उनको वे देश और समाज के लिए हानिकारक मानते। इसलिए गांव की ललनाएं उनकी निंदा करतीं।

6. आनंदी कौन थी ? वह कैसे परिवार से आई थी ?

आनंदी श्रीकंठ सिंह की पत्नी थी । वह एक बड़े परिवार से आई थी। वह एक बड़े ताल्लुकदार भूपसिंह की लाडली बेटी थी जिसके मैके में सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त थी।

7. आनंदी और लाल बिहारी का झगड़ा किस बात को लेकर हुआ ?

उत्तर - एक दिन लाल बिहारी सिंह को दाल में घी नहीं मिला। ज उसने आनंदी से पूछा कि दाल में घी क्यों नहीं है , तो आनंदी ने कहा कि थोड़ा घी बचा था जो हमने मांस में डाल दिया है। अब घी नहीं है। इस बात पर लाल बिहारी सिंह ने कहा कि अभी परसों ही घी आया था सो समाप्त हो गया। मायके में तो जैसे घी की नदी बहती है। यह सुनकर आनंदी मुंह फेरकर बोली , इतना घी तो वहां नाई कहार खा जाते हैं। इसी बात पर दोनों में झगड़ा हो गया। लाल बिहारी सिंह थाली पटक दिया और खड़ऊ
 फेंककर आनंदी को मारना चाहा।

8. लाल बिहारी सिंह और बेनीमाधव सिंह ने श्री कंठ सिंह से क्या शिकायत की ?

उत्तर - लाल बिहारी सिंह और बेनीमाधव सिंह ने श्री कंठ सिंह से आनंदी की शिकायत की और कहा कि बहु - बेटियों को मर्दों से मुंह लगना अच्छा नहीं होता। कुछ अनर्थ भी हो सकता है।

9. " दूसरों को उपदेश देना कितना सहज है " - यह पंक्ति लेखक ने किस प्रसंग में कहीं है ?

उत्तर - जब श्री कंठ सिंह विद्रोह पर उतर आए और घर छोड़कर जाने की बात कहने लगे ,उस प्रसंग में लेखक ने यह बात कही है। वास्तव में श्री कंठ सिंह दूसरे के ऐसे मामलों में बड़
 लम्बा चौड़ा भाषण देते थे।


10. बूढा ठाकुर अवाक् रह गए, क्यों ?

उत्तर -  श्री कंठ सिंह अपने पिता बेनीमाधव सिंह का बड़ा लिहाज करते थे। आज श्री कंठ सिंह के विद्रोही तेवर देख कर अवाक रह गए।

11. श्री कंठ सिंह ने अपने पिता और भाई से अलग होने का निश्चय क्यों किया ?

उत्तर - श्री कंठ सिंह की पत्नी आनंदी सुरक्षित नहीं थी। उनके पीछे लालबिहारी ने उनकी पत्नी को प्रताड़ित किया था इसलिए वह अपने पिता और भाई से अलग होना चाहते थे।

12. लाल बिहारी को भाई की किस बात से अधिक दुख हुआ ?

उत्तर - श्री कंठ सिंह अपने भाई लाल बिहारी सिंह को बहुत मानते थे। कयी बार उन्होंने लाल बिहारी को उपहार भी दिया था। आज वे कहते हैं कि मैं उसके साथ नहीं रहूंगा। यह बात सुनकर लाल बिहारी सिंह का मन ग्लानि से भर गया ।

13. आनंदी को अपने किए पर कब और क्यों पश्चाताप हुआ ?

उत्तर - आनंदी को यह उम्मीद नहीं थी कि बात इतनी बिगड़ जाएगी। उसने सोचा था कि श्री कंठ सिंह अपने लाडले भाई को थोड़ा डांट - डपट कर देंगे। बात यहीं खत्म हो जाएगी। लेकिन यहां तो बात इतनी बढ़ गई कि लालबिहारी घर छोड़कर जाने लगे। परिवार बिखडने की नौबत आ गई। तब आनंदी को पश्चाताप हुआ।

14. सारे गांव ने कहा - बड़े घर की बेटियां ऐसे ही होती है, क्यों ?

उत्तर - आनंदी के कहने पर श्री कंठ सिंह इतने बिगड़ गये कि स्थिति बहुत खराब हो गई। लाल बिहारी सिंह घर छोड़कर जाने लगे। आनंदी को लगा कि अब तो घर - परिवार ही बिखड़ जाएगा। यह स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। तो उसने आगे बढ़कर लाल बिहारी को जाने से रोक लिया। इस तरह उसने बिगड़ती स्थिति को संभाला। इसी बात पर गांव वालों ने कहा - बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं।

15. " बड़े घर की बेटी " एक आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी कहानी है। " प्रमाणित करें।

उत्तर -- " बड़े घर की बेटी " मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी कहानी है। इस तथ्य को प्रमाणित करने से पहले हमें आदर्शवाद और यथार्थवाद के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहिए। आदर्शवाद और यथार्थवाद बीसवीं शताब्दी के साहित्य की विचारधारा है। आदर्शवाद में सत्य की अवहेलना करके एक उत्तम आदर्श की स्थापना की जाती है। जबकि यथार्थ वाद में आदर्श का पालन नहीं किया जाता। सब कुछ सच - सच वर्णन किया जाता है। 

आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद में यथार्थ का चित्रण करते हुए आदर्शोन्मुखी बनने की प्रेरणा दी जाती है। प्रेमचंद जी अपने रचना काल के पूर्वार्द्ध में ऐसी ही कहानियां लिखी है।

" बड़े घर की बेटी" कहानी में उच्च वर्ग की पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों और मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया गया है। ठाकुर वेनी माघव सिंह के पूर्वज किसी जमाने में बड़े जमींदार थे। लेकिन अब उनकी स्थिति बिगड़ गई है। उनके दो बेटे हैं - श्रीकंठ सिंह और लाल बिहारी। श्रीकंठ पढ़ा लिखा समझदार है लेकिन लाल बिहारी अनपढ़ गंवार। बात - बात में लाल बिहारी अपनी भाभी आनंदी से लड़ जाता है। बात हुई आगे बढ़ जाती है। लालबिहारी सिंह घर छोड़कर जाने लगते हैं, तभी आनंदी सबकुछ भूलकर लाल बिहारी को घर छोड़ कर जाने से रोक लेती है। इस तरह एक संयुक्त परिवार टूटने  - बिखडने से बच जाता है। यह एक आदर्श स्थिति है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बड़े घर की बेटी एक आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी कहानी है।

बहुविकल्पी प्रश्न


1. बेनीमाधव सिंह किस गांव से थे ?

क रामपुर 
ख गौरीपुर
ग धामपुर
घ गोपालपुर

उत्तर - ख गौरीपुर 

2. ठाकुर साहब के बड़े बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर
क लाल बिहारी
ख भूप सिंह
ग श्री कंठ सिंह
घ सूरज

उत्तर  ग श्रीकंठ सिंह 

बड़े घर की बेटी कहानी की पूरी जानकारी यहां आपको कैसी लगी। अपना सुझाव और कामेंट अवश्य लिखें। कुछ और जानकारी चाहिए तो हमें अवश्य लिखें।



इसे भी पढ़ें


                        सोनाक्षी सिन्हा की जीवनी

                       सुरसा की कहानी


डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।



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