सावधान, जननायक सावधान! कविता, भावार्थ, sawdhan jannayak poem, Balkrishna Rao
सावधान! जननायक कविता , भावार्थ,सार कवि बालकृष्ण राव Sawdhan jannayak poem/ Balkrishna Rao, जननायक को झूठी प्रशंसा से बचना चाहिए यह स्तुति का सांप तुम्हें डस न ले। बचो तुम इन बढ़ी हुई बाहों से धृतराष्ट्र मोहपाश कहीं तुम्हें कस न ले। सुनते हैं कभी किसी युग में पाते ही राम का चरण स्पर्श शिला प्राणवती हुई। देखते हैं किंतु आज अपने उपास्य के चरणों को छू छू कर भक्त उन्हें पत्थर की मूर्ति बना देते हैं। सावधान, भक्तों की टोली आ रही है पूजा - द्रव्य लिए! बचो अर्चना से, फूल माला से, बचो वंदना की वंचना से, आत्म - रति से, बचो आत्म पोषण से। सावधान! जननायक कविता का भावार्थ सावधान जननायक कविता कविवर बालकृष्ण राव द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने जननायक से अपने प्रशंसकों की झूठी प्रशंसा से बचने का आग्रह किया है। सत्ताधारी जननायकों को चाटुकारों की झूठी प्रशंसा से बचना चाहिए। कारण कि झूठी प्रशंसा इनके विवेक को अविवेक में बदल देती है। जननायकों को चाटुकारों के इस मोहपाश से बचना चाहिए। प्रशंसक झूठी प्रशंसा द्वारा जननायकों को पत्थर बना...