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सर्वनाम किसे कहते हैं ? सर्वनाम के भेद लिखें। पुरूष वाचक, निजवाचक, निश्चय वाचक, अनिश्चयवाचक, संबंध वाचक, प्रश्न वाचक सर्वनाम, sarawnam, pronoun, kind of pronoun in Hindi grammar

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  सर्वनाम किसे कहते हैं ? सर्वनाम के भेद लिखें। पुरूष वाचक, निजवाचक, निश्चय वाचक, अनिश्चयवाचक, संबंध वाचक, प्रश्न वाचक सर्वनाम, sarawnam, pronoun, kind of pronoun in Hindi grammar  संज्ञा के बदले में आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जाता है कि अपने पूर्वापर संबंध के कारण संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।  उदहारण -- राम पटना में रहता है। वह मेरा भाई है। यहां वह शब्द सर्वनाम है। वह शब्द संज्ञा राम शब्द के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है। यही पूर्वापर संबंध है।  सर्वनाम के भेद सर्वनाम के छः भेद हैं  पुरूष वाचक, निज वाचक, निश्चय वाचक, अनिश्चयवाचक, संबंध वाचक, और प्रश्न वाचक सर्वनाम 1. पुरूष वाचक सर्वनाम -- किसी स्त्री अथवा पुरुषों के नामों के बदले आने वाले शब्दों को पुरूष वाचक सर्वनाम कहते हैं। इसके तीन भेद हैं - प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष। वह, यह, मैं तुम हम आदि पुरुष वाचक सर्वनाम के उदाहरण है। 2. निजवाचक -- वैसे सर्वनाम जो स्वयं के लिए प्रयोग किए जाते हैं । जैसे - मैं स्वयं चला जाऊंगा। मैं आप ही खा लूंगी। 3. निश्चय वाचक सर्वन

मृतिका कविता, भावार्थ, प्रश्न उत्तर, शब्दार्थ, कवि नरेश मेहता,miritika, summary

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लोहे का स्वाद कविता            मृतिका कविता  मृतिका कविता, भावार्थ, प्रश्न उत्तर, शब्दार्थ, कवि नरेश मेहता,miritika, summary  मृतिका कविता, मृतिका कविता का भावार्थ, मृतिका का अर्थ, मृतिका कब अंतरंग प्रिया बन जाती है ? मृतिका कब मातृरूपा बन जाती है। मैं तो मात्र मृतिका हूं, ऐसा कहने का क्या तात्पर्य है ? नरेश मेहता की कविता मृतिका। Miritika poem, miritika poem summary, miritika meaning, miritika question answer, naresh Mehta poem. मृतिका कविता नरेश मेहता रचित प्रसिद्ध कविता है जिसमें कवि ने मनुष्य के पुरुषार्थ के महत्व को बताने का सफ़ल प्रयास किया है। मृतिका का अर्थ मिट्टी है। मिट्टी स्वयं में कुछ नहीं है, वह मनुष्य के मेहनत से तरह तरह का रूप प्राप्त करती है। यहां मृतिका कविता, भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर देखा जा सकता है। मैं तो मात्र मृतिका हूं-- जब तुमने  मुझे पैरों से रौंदते हो तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो तब मैं-- धन धान्य बनकर मातृरूपा  हो जाती हूं। जब तुम  मुझे हाथों से स्पर्श करते हो तब चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो तब मैं कुंभ और कलश बनकर जल लाती अंतरंग प्रिया बन जाती ह

सवेरे - सवेरे , हिंदी कविता, कवि कुंवर नारायण sawere - sawere , poem in Hindi, poet kuwar narayana

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        सवेरे - सवेरे , हिंदी कविता, कवि कुंवर नारायण sawere - sawere , poem in Hindi, poet kuwar narayana  कार्तिक की एक हंसमुख सुबह! नदी - तट से लौटती गंगा नहाकर सुवासित भींगी हवाएं सदा पावन मां सरीखी अभी जैसे मंदिरों में चढ़ाकर खुशरंग फूल ठंड से सीत्कारती घर में घुसी हो, और सोते देख मुझको जगाती हो -- सिरहाने रख एक फूल हरसिंगार के , नर्म ठंडी उंगलियों से गाल छूकर प्यार से बाल बिखरे हुए तनिक सवांर के -- प्रश्न -- प्रातः काल में नींद से कौन जगाती हैं ? उत्तर -- प्रातःकालीन बेला में नींद से हमें मां जगाती हैं ।  प्रश्न  सवेरे  सवेरे मां सरीखी समीर जगाने आती है । कविता में यह क्यों कहा गया है ? उत्तर -- प्रातः काल में सवेरे सवेरे हमें सोते से मां जगाती हैं। उसी तरह सवेरे सवेरे ठंडी हवाएं थोड़ी तेज होकर हमारे गालों को छूकर हमें जगाती हैं। इसलिए कहा गया है कि सवेरे सवेरे समीर हमें जगाती है मां की तरह। प्रश्न -- ठंडी हवाएं किस प्रकार जगाती हैं ? उत्तर -- ठंडी हवाएं धीरे धीरे सहला कर मां की तरह जगाती हैं । राम नाम की महानता    राम -नाम - मनि दीप धरु जीह देहरि द्वार। 'तुलसी ' भीतर - ब

गुलाबी चूड़ियां कविता , कवि नागार्जुन, gulabi churiyan poem, bhawarth, questions answers

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गुलाबी चूड़ियां कविवर नागार्जुन रचित वात्सल्य रस की एक उत्कृष्ट रचना है। यहां कवि ने एक ड्राइवर जैसे उजड़ समझे जाने वाले व्यक्ति के मन में उत्पन्न अपनी बेटी के प्रति वात्सल्य प्रेम का जो भाव दिखाया है व अनुपम और अविस्मरणीय है। यहां गुलाबी चूड़ियां कविता और  भावार्थ तथा प्रश्न उत्तर दिया गया है।  गुलाबी चूड़ियां कविता , कवि नागार्जुन, gulabi churiyan poem, bhawarth, questions answers  सवेरे सवेरे कविता पढे   प्राइवेट बस का ड्राइवर हैं तो क्या हुआ ? सात साल की बच्ची का पिता तो हैं ! सामने गियर से ऊपर हुक से लटका रखी है कांच की चार चूड़ियां गुलाबी। बस की रफ्तार के मुताबिक  हिलती रहती हैं, झुक कर मैंने पूछ लिया, खा गया मानो झटका। अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा आहिस्ते से बोला : हां सा बन लाख कहता हूं, नहीं मानती है मुनिया। टांगे हुए हैं कई दिनों से अपनी अमानत यहां अब्बा की नजरों के सामने। मैं भी सोचता हूं  क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियां, किस जुर्म पे हटा दूं इनको यहां से ? और , ड्राइवर ने एक नजर मुझे देखा, और मैंने एक नजर उसे देखा, छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी - बड़ी आंखों से, तरलता हाव

गिरिधर की कुंडलियां, Giridhar ki kundaliya, bhawarth, questions answers कुंडली के अर्थ, शब्दार्थ

गिरिधर की कुंडलियां, अर्थ सहित, Giridhar ki kundaliya,  bhawarth, questions answers कुंडली के अर्थ, शब्दार्थ, गिरधर कविराय के जीवन के कुछ अंश, कुंडलियां की विशेषता  बीती ताहि बिसार दे, सांई अपने चित्त की, बिना बिचारे जो करे biti tahi bisar de, Sai apne chitt ki, Bina bichare Jo kare, girdhar ki kundaliya, girdhar kavirai, class 8 poem  बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई ; का अर्थ बताएं  बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई का हमारे जीवन में क्या महत्व है। बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेई । जो बनि आवै सहज में , ताहि में चित्त देई ।‌। ताहि में चित्त देई, बात जोई बनी आवै । दुर्जन हसै न कोई , चित्त में खता न पावै।। कह गिरधर कविराय, यहै करुमन परतीती। आगे को सुख समुझि, हो, बीती सो बीती।। भावार्थ  गिरिधर की कुंडलियां शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। प्रेरणा दायक है। कवि कहते हैं -- जो बीत गई सो बात गई। जो बात बीत गई उसे वहीं भूल जाना चाहिए। और आगे का काम देखना चाहिए। इसी में भलाई है। इससे मन में कोई दुःख भी नहीं होता। इसलिए बीती बातें भूल जाओ। अपने मन की बात किसी को क्यों नहीं बताना च

जैसी करनी वैसी भरनी Jaisi karni waisi bharni

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                जैसी करनी वैसी भरनी                    Jaisi  karni  waisi bharni                   लेखक -- डॉ उमेश कुमार सिंह  एक राजा था । उसने अपने तीन दरबारी मंत्रियों को बुलाया और कहा -- जाओ और अपने हाथ में एक एक थैली लेकर शीघ्र आओ। राजा की आज्ञा थी। भला विलम्ब कैसे होती ? तीनों मंत्रियों ने जल्दी से एक - एक थैली लेकर राजा के पास हाजिर हुए। अब राजा ने उन्हें उस थैले में ऐसे - ऐसे फल भरकर लाने को कहा जो राजा को पसंद हों। राजा की पसंद की बात थी । तीनों मंत्री बगीचे की ओर दौड़ पड़े।  अब आगे की बात सुनिए। पहले मंत्री ने सोचा - राजा को पसंद करने के लिए हमें अच्छे-अच्छे फल इक्कठे करने चाहिए। राजा खुश होंगे तो हमें इनाम देंगे। ऐसा सोचकर उसने खूब मीठे-मीठे फ़ल थैली में भर लिए।  अब दूसरे मंत्री की बात सुनिए। उन्होंने सोचा। राजा कौन थैली खोलकर फल देखने जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने जैसे तैसे कुछ अच्छे कुछ खराब फल थैली में भर लिए। अब तीसरे मंत्री की करतूत सुनिए। उसने सोचा - राजा के महल में फलों की क्या कमी है। कौन थैली देखने जा रहा है। इसलिए उन्होंने फल की जगह थैली में ईंट पत्थर भर लिए।  तीनों

संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?

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  संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? महाभारत में यक्ष ने वनवास के दौरान युधिष्ठिर से पूछा -- संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?  युधिष्ठिर ने उत्तर दिया -- हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों को मृत्यु के मुख में जाते देखकर भी बचे हुए प्राणी, जो यह चाहते हैं कि हम अमर हैं । यही सबसे बड़ा आश्चर्य है। यह बात बिल्कुल सही कहा युधिष्ठिर ने । संसार नश्वर है। यहां सब कुछ समाप्त होने वाले हैं। यह बात सच होते हम रोज देखते हैं। परंतु फिर भी अहंकार के वश में होकर मनुष्य अमर होने जैसा व्यवहार करता है। यह आश्चर्य नहीं तो और क्या है। सच्चा हितैषी निबन्ध  ।  क्लिक करें और पढ़ें।

नचिकेता कहानी का सारांश और प्रश्न - उत्तर Nachiketa story summary and questions answers

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 Nachiketa  नचिकेता कहानी  स्वर्ग पाने के उपाय sawarg pane ke upay आत्मा का रहस्य क्या है ? Atama ka rahasya                नचिकेता  नचिकेता कहानी का सारांश और प्रश्न - उत्तर Nachiketa story summary and questions answers , by Dr. Umesh Kumar Singh  नचिकेता कहानी कठोपनिषद से ली गई है। यह कथा बालक नचिकेता के माध्यम से एक ऐसा उदात्त चरित्र प्रस्तुत करती है जिसमें अटूट सत्य निष्ठा, दृढ़ पितृभक्ति के साथ अनुचित कार्य करने पर  पिता का विरोध करने का और आत्म ज्ञान हेतु सांसारिक सुखों के प्रलोभन को ठुकरा देने का साहस भी है। नचिकेता का चरित्र अनुकरणीय है। यहां कहानी के साथ ही प्रश्न उत्तर भी दिया गया है। यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित हो रही थी। वेद मंत्रों के साथ ब्राह्मण यज्ञ कुंड में घी आदि की आहूतियां दे रहे थे। वेदोच्चारण से वातावरण पवित्र हो रहा था। वाजश्रवा के चेहरे पर विशेष प्रसन्नता का भाव था क्योंकि उनके द्वारा आयोजित यज्ञ की आज पूर्णाहूति जो थी। देश भर के बड़े - बड़े विद्वान पंडित वहां पधारे थे । उन्हें लग रहा था कि यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात वाजश्रवा उन्हें एक से बढ़कर एक कीमती और उपयोगी

संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम

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  भारतीय संतों की महानता  संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम एक बार की बात है। बादशाह अकबर कृष्ण भक्त कवि कुंभनदास की गायकी की ख्याति सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुलाने के लिए पालकी भेजा। कुभानदास बड़े स्वाभिमानी और निडर थे। वे श्री कृष्ण के भक्त जो थे। बादशाह अकबर के द्वारा भेजे पालकी को ठुकरा दिया। पैदल ही फतेहपुर सीकरी पहुंचे। बादशाह अकबर बहुत खुश हुआ। उसने कुंभनदास जी से कुछ सुनाने का आग्रह किया। उसकी इच्छा थी कि कुंभनदास बादशाह की खिदमत में कुछ गाएंगे। परन्तु भक्त कवि कुंभनदास जी ने गाया -- संतन को कहां सीकरी सो काम। आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गये हरि नाम ।। अर्थात साधु - संतों को फतेहपुर सीकरी से क्या काम है। यहां से उन्हें क्या लेना-देना है ? झूठे भटकते रहेंगे। और बादशाह के पास आने - जाने के क्रम में पनही ( जूते ) भी टूट जाएंगे। और हरि नाम भी भूल जाएंगे।  बादशाह अकबर समझ गये कि ईश्वर भक्त बड़े निडर होते हैं। इन्हें दरबारी नहीं बनाया जा सकता है। ये स्पष्ट वक्ता हैं, इनपर नाराज नहीं होना चाहिए। नाहिंन रह्यै मन में ठौर। नंद नंदन अछत कैसे आनियौ उर और

राम -नाम - मनि दीप धरु जीह देहरि द्वार। 'तुलसी ' भीतर - बाहिरौ जो चाहसि उजियार

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राम नाम की महानता    राम -नाम - मनि दीप धरु जीह देहरि द्वार। 'तुलसी ' भीतर - बाहिरौ जो चाहसि उजियार।। भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं --- यदि शरीर के अंदर और बाहर दोनों ओर पवित्रता का आलोक फैलाना चाहते हो तो राम - नाम रूपी दीपक को अपनी जीभ पर सदा के लिए रख लो। जिस प्रकार घर के अंदर और बाहर दोनों ओर प्रकाश के लिए दरवाजे पर दीपक रखना चाहिए, इससे  दोनों ओर प्रकाश  फैलता है। उसी प्रकार शरीर के भीतर और बाहर दोनों ओर के  हिस्से को पवित्र रखना है तो राम नाम का सदा उच्चारण करते रहो। तुलसी दास के इस दोहे में रूपक अलंकार की बहुत सुंदर अभिव्यंजना हुई है। छंद दोहा है। तुलसी के राम   पढ़ने के लिए क्लिक करें  Popular posts of this blog, click and watch अन्तर्राष्ट्रीय  योग दिवस 2021 नेताजी का चश्मा "कहानी भी पढ़ें सच्चा हितैषी निबन्ध  ।  क्लिक करें और पढ़ें।    Republic Day Essay  

नदी का रास्ता कविता का भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर,नदी को रास्ता किसने दिखाया,Nadi ka rasta poem, explain,poet Balkrishan rao

  नदी का रास्ता कविता का भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर,नदी को रास्ता किसने दिखाया,Nadi ka rasta poem, explain,poet Balkrishan rao विषय सूची नदी का रास्ता कविता नदी का रास्ता कविता का शब्दार्थ नदी का रास्ता कविता का भावार्थ नदी का रास्ता कविता का प्रश्न उत्तर Nadi ka rasta poem, नदी का रास्ता कविता, कवि बाल कृष्ण राव नदी को रास्ता किसने दिखाया  सिखाया था उसे किसने कि अपने भावना के वेग को उन्मुक्त बहने दे, कि वह अपने लिए खुद खोज लेगी सिंधु की गंभीरता स्वच्छंद बहकर ? इसे हम सुनते आए युगों से, और सुनते ही युगों से आ रहे उत्तर नदी का -- मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने, बनाया मार्ग मैंने आप ही अपना  । ढकेला था शिलाओं को, गिरी निर्भीकता से मैं कई ऊंची प्रपातों से, वनों से कंदराओं में भटकती भूलती मैं फूलती उत्साह से प्रत्येक बाधा विघ्न को ठोकर लगाकर ठेलकर बढ़ती गई आगे निरंतर एक तट को दूसरे से दूरतर करती। बढ़ी सम्पन्नता के साथ और अपने दूर तक फैले हुए साम्राज्य के अनुरूप गति को मंदकर-- पहुंची जहां सागर खड़ा था फेन की माला लिए मेरी प्रतीक्षा में, यही इतिवृत्त मेरा। मार्ग मैंने आप ही अपना

Tulsi ke Ram , तुलसी के राम कविता

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जैसी करनी वैसी भरनी, जो करेगा वही पाएगा   Tulsi ke Ram , तुलसी के राम कविता  गोस्वामी तुलसीदास श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। उन्होंने श्रीराम से संबंधित कई पुस्तकें लिखी हैं। यहां बालक श्री राम के रूप सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया गया है। यह कविता पांचवीं कक्षा में पढ़ाई जाती है।                    तुलसी के राम कविता कक्षा पांचवीं  अवधेश के द्वार सकारे गई,सुत गोद  के भूपति ले निकसै। अवलोकहिं सोच विमोचन को, ठगी सी रही जे न ठगे धिक से। तुलसी मन रंजन रंजित अंजन नयन सुखंजन जातक से। सजनि ससि में समसील उभै नवनील सरोरूह से विकसे।।  भावार्थ एक सखी दूसरी सखी से कहती है -- अवधेश राजा दशरथ के द्वार पर देखी हूं कि सबेरे ही राजा दशरथ अपने पुत्र राम को गोद में लेकर बाहर निकले। बाल राम के रूप सौंदर्य को देखकर मैं चकित रह गयी। उनकी आंखें खंजन पक्षी के बच्चे की तरह थी। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे चांद में दो नीले कमल खिले हो। उनकी सुन्दरता देखकर को मोहित नहीं होगा ? तन की दुति स्याह सरोरूह,लोचन कंज की मंजुलताई हरे। अति सुन्दर सोहत धूरि भरे,छवि भूरि अनंग की दूरी धरे। दमकै दतियां दुति दामिनी ज्यों, किलकै क