वर्नआउट सिंड्रोम क्या है ? वर्नआउट सिंड्रोम क्यों होता है ? वर्नआउट एपिडेमिक क्यों होता है ? भीमेश बाबू कौन थे? भीमेश बाबू के साथ क्या घटित हुई ? भारत सहित अमेरिका, यूरोपीय देशों में वर्न आऊट सिंड्रोम की क्या स्थिति है ?
वर्नआउट सिंड्रोम क्या है ? वर्नआउट सिंड्रोम क्यों होता है ? वर्नआउट एपिडेमिक क्यों होता है ? भीमेश बाबू कौन थे? भीमेश बाबू के साथ क्या घटित हुई ? भारत सहित अमेरिका, यूरोपीय देशों में वर्न आऊट सिंड्रोम की क्या स्थिति है ?
दोस्तों ! वर्नआउट सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति होती है जो काम के अत्यधिक दबाव से उत्पन्न होती है। निजी जीवन पर पेशेवर जीवन हावी हो जाता है और कर्मचारी अवसाद में अथवा हिंसक बन जाता है। काम के बोझ से उनके निजी रिश्तों में दरार आ जाता है।
भीमेश बाबू के साथ घटित हुई मार्मिक घटना से हम इस बात को और स्पष्टता से समझते हैं। भीमेश बाबू बैंगलोर के एक डाटा डिजिटल बैंक में प्रतिदिन की तरह रात एक बजे अपनी ड्यूटी निपटाकर घर जाने की तैयारी कर रहे थे। किसी कारण से तेज रोशनी उनकी आंखों में चुभती थी। अक्सर वे अनावश्यक बत्तियां बुझाने को कहते। उस रात भी उन्होंने अपने एक सहयोगी कर्मी को अनावश्यक बत्तियां बुझाने को कहा। बस इतनी सी बात पर वह कर्मी भड़क उठा। बात इतनी बढ़ गई कि उसने भीमेश बाबू पर जानलेवा हमला बोल दिया और उस हमले से भीमेश बाबू की मौत हो गई।
इस शर्मनाक घटना ने समूचे विश्व को झकझोर कर रख दिया है। मनोवैज्ञानिकों और समाज के हितचिंतकों के बीच वर्क लाइफ बैलैंस के प्रति चिंताएं और बढ़ा दी है। भारत वर्ष दुनिया की आर्थिक महाशक्ति के पथ पर तेजी से बढ़ रहा है परन्तु वर्न आऊट के जबड़े में भी अपने कर्मचारियों को ढकेलने में पीछे नहीं है। वर्नआउट एपिडेमिक का शाब्दिक अर्थ है काम के अत्यधिक दबाव से टूटन।
सर्वेक्षण बताते हैं कि अपने देश और समाज में काम का समय मानक से कहीं ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में छः कार्य दिवस में अधिकतम 48 घंटे काम करने का रिवाज है।
भारत कार्य की समय-सीमा के मामले में उन तेरह देशों में सामिल है जहां काम के घंटे सर्वाधिक है। इसके दुष्प्रभाव सामने है। एक शोध के दौरान साठ फीसदी से ज्यादा लोगों में वर्न आऊट के लक्षण पाए गए हैं।
क्यों होता है वर्नआउट सिंड्रोम
वर्नआउट एक ऐसी स्थिति है काम के अत्यधिक दबाव से उत्पन्न होती है। जब निजी जीवन में पेशेवर अनिवार्यता दखल देने लगती हो तब वर्न आऊट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। डिजिटल उपकरणों के द्वारा घर पर भी कर्मी चैन से नहीं बैठते। घर पहुंचे नहीं कि दफ्तर से मोबाइल पर मैसेज आने शुरू हो गये। फिल्ड में काम करने वाले कर्मचारी भी जीपीएस की निगरानी में रहते हैं।
अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब नौकरी मिलने की खुशी में लोग फूले नहीं समाते लेकिन कुछ ही महीनों में उन्हें लगता है कि मैं किस जेलखाने में आ गया। एक और उदाहरण है। 25 वर्षीय अन्ना को जब एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी मिली तो उनका दिल खुशी से झूम रहा था। लेकिन मात्र 14 महीने में काम के अत्यधिक दबाव और शोषण ने कुछ ऐसा माहौल बनाया कि वह हृदयाघात से चल बसी।
संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि एक ऐसी नीति की आवश्यकता है जो कामगारों और नियोक्ताओं के बीच साझा विकास स्थापित कर सके। मानव और तकनीक के बीच नये मानक स्थापित करने की आवश्यकता है। मानवता को सर्वोपरि समझना चाहिए।
डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।
राम विलाप
Lakshaman murchha aur Ram vilap, लक्ष्मण मूर्छा और राम विलाप, लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने की कहानी और राम का रोना, हनुमानजी द्वारा संजीवनी बूटी लाना ,राम चरित मानस , लक्ष्मण मूर्छा और राम विलाप पाठ का सारांश,
रामचरितमानस में लक्ष्मण मूर्छा और राम विलाप, लक्ष्मण को मूर्छा कैसे लगी। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम क्या सोचने लगे। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर सामान्य मनुष्य की तरह कौन विलाप करने लगे । लक्ष्मण कहां मूर्छित हुए ? राम को लक्ष्मण के बिना अयोध्या लौटने पर क्या सहना पड़ेगा? लक्ष्मण मूर्छा और राम विलाप पाठ का प्रश्न उत्तर । लक्ष्मण मूर्छा पाठ के आधार पर तुलसीदास अपने किस रूप पर गर्व करते हैं ? राम किस की तुलना में अपने भाई को अधिक महत्व देते हैं? तुलसीदास की नारी दृष्टि पर प्रकाश डालिए। लक्ष्मण शक्ति और राम का विलाप।
Ramcharitmanas mein Lakshman morcha aur Ram vilap. Lakshman ko morcha kaise lagi. meghnath kaun tha. Lakshman ke moorchit hone per Ram kya sochne Lage. Lakshman ki moorchit hone per samanya manushya ki tarah Kaun Rone Lage. Lakshman kahan murchit hue. Lakshman morcha aur Ram vilap question answer. Tulsidas ko Apne kis roop per ghamand hai . Tulsidas ki nari Drishti per Prakash daliye Lakshman Shakti aur Ram vilap. Class 12 hindi poem
'लक्ष्मण मूर्छा और राम' विलाप प्रसंग श्री राम चरित मानस का बहुत ही मार्मिक प्रसंग है, जिसका वर्णन महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत सफलता के साथ किया है। यह प्रसंग कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है। लंका के युद्ध में मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये। हनुमान जी वैद्य सुषेण के कहने पर संजीदगी बूटी लाने जाते हैं और इधर लक्ष्मण बेसुध होकर धरती पर पड़े हैं, राम जी मूर्छित लक्ष्मण को देखकर विलाप कर रहे हैं। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास लक्ष्मण मूर्छा और राम विलाप प्रसंग का वर्णन करते हुए कहते हैं --
तव प्रताप उर राखी प्रभु जैहऊ नाथ तुरंत
अस कहि आयसु पाई पद बंदी चलेऊ हनुमंत।।
भरत बाहुबल शीलगुण प्रभु पद प्रीति अपार।
मनमहुं जात सराहत पुनि पुनि पवन कुमार।।
भावार्थ
हनुमान भरत से बोले हे नाथ , हे प्रभु! आप बड़े प्रतापी हैं । यह बात मन में धारण करके मैं आपके बाण पर बैठकर तुरंत चला जाऊंगा। ऐसा कह कर भरत के चरणों की वंदना करके उनसे आज्ञा लेकर हनुमान लंका की ओर चल पड़े ।भरत के बाहुबल ,सुकोमल व्यवहार, विविध गुण तथा राम के चरणों में अपार प्रेम देखकर हनुमान जी उनकी मन ही मन बार-बार प्रशंसा करते जाते थे।
उहां राम लक्ष्मण ही निहारी । बोले बचन मनुज अनुसारी ।।
अर्धरात्रि गई कपि नहीं आयऊ। राम उठाई अनुज उर लायऊ ।।
सकहुं ना दुखित देखी मोहि काऊ। बंधू सदा तब मृदुल स्वभाऊ।।
मम हित लागी तजहुं पितु माता । सहेहू बिपिन हिम आतप बाता।
भावार्थ
उधर लंका में राम ने मूर्छित लक्ष्मण की ओर देखा, अधीर होकर मनुष्यों के समान शोक भरे वचन कहने लगे। बोले-- आधी रात बीत गई हैं। हनुमान अभी तक नहीं आए। राम ने अधीर होकर अपने अनुज लक्ष्मण को उठाकर छाती से लगा लिया। राम बोले, हे भाई, तुम अपने होते हुए मुझे कभी दुखी नहीं देख सके। तुम्हारा स्वभाव सदा से ऐसा कोमल और मृदुल रहा है। तुमने मेरे हित के लिए अपने माता-पिता तक को त्याग दिया और जंगल में रहकर बर्फ, धूप, आंधी तूफान के कष्टों को सहते रहे।
सो अनुराग कहां अब भाई। उठहूं न सुनि मम बच विकलाई।।
जो जनतहूं वन बंधु बिछोहू। पिता बचपन मनमहुं नहिं ओहू।।
सुत बिता नारि भवन परिवारा। होंहि जाहिर जग बारहिं बारा।
अस विचारित जियो जागहूं जाता। मिलिई न जगत सहोदर भ्राता।।
भावार्थ
प्रिय भाई लक्ष्मण! तुम्हारा वह पहले जैसा प्रेम अब कहां है? तुम मेरे व्याकुल पूर्ण वचन सुनकर उठते क्यों नहीं ? यदि मुझे पता होता कि मुझे वन में अपने भाई से बिछड़ना पड़ेगा तो मैं अपने पिता के वचन मानने से इंकार कर देता और वन में नहीं आता ।
भाई लक्ष्मण ! इस संसार में पुत्र धन, पत्नी , मकान और परिवार बार-बार बनते हैं और बिगड़ते हैं। वह जीवन में आते हैं और फिर चले भी जाते हैं, परंतु सगा भाई चाह कर भी दोबारा नहीं मिलता है । मन में यह विचार करके तुम तुरंत जाग जाओ।
सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
मम हित लागि तजहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।।
सो अनुराग कहां अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ।।
जौं जनतेऊं बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेऊं नहीं ओहू।।
भावार्थ
श्री राम विलाप करते हुए कहते हैं -- हे भाई लक्ष्मण ! तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख पाते थे परंतु आज क्या हुआ ? मेरे लिए तुमने अपने माता-पिता को छोड़कर वन में आ गए हो। मुझ पर तुम्हारा इतना स्नेह था कि तुम मुझे कभी उदास नहीं देख पाते थे। परंतु आज क्या हो गया। यदि मैं जानता कि वन आने से प्रिय भाई हमसे बिछड़ जाएगा तो मैं कभी भी पिता जी की बात नहीं मानता। ऐसा कहकर श्री राम विलाप कर रहे हैं।



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